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________________ १४० ] [ मुहूर्तराज __ अर्थ - यात्रार्थी का अपने घर से किसी अन्य घर तक प्रस्थाप्य वस्तु लेकर जाना प्रस्थान है ऐसा गर्गाचार्य का मत है। भृगु कहते हैं कि एक गाँव की सीमा का उल्लंघन करके दूसरे गाँव की सीमा में पहुँचना प्रस्थान है। एक योद्धा का बलपूर्वक चलाया गया बाण जितनी दूरी पर जाए प्रमाण भूमि तक यात्रा करना प्रस्थान कहलाता है ऐसा भारद्वाज का कथन है एवं वशिष्ठ का मत है कि नगर से बाहर जाना प्रस्थान है। राजमार्तण्डकार गृहाद गृहान्नरं गर्ग सीम्नः सीमान्तरं भृगुः । शरक्षेपाद् भरद्वाजो वसिष्ठो नगराद् बहिः ॥ मुनिमत से प्रस्थान परिमाण -(मु.चि.या.प्र. श्लो. ९४ वाँ) प्रस्थानमत्र धनुषां हि शतानि पञ्च , केचिच्छतद्वमुशन्ति दशैव चान्ये । सम्प्रस्थितो य इह मन्दिरतः प्रयातो। गन्तव्यदिक्षु तदपि प्रयतेन कार्यम् ॥ अन्वय - अत्र धनुषां पञ्चशतानि प्रस्थानम् हि इति के चित् (आचार्या) ऊचू: अन्ये तु धनुषां शतद्वयम् अपरे च धनुषां दशैव प्रस्थानम् उशन्नि मन्दिरतः (गृहत: दशैव धनूंषि == चत्वारिंशहद्धस्तावधि दूरे) सम्प्रस्थितः प्रयात एव ज्ञेयः। तदपि प्रस्थानं यात्रिणा तन्तव्यदिक्षु (यत्र यात्रा चिकीर्षितातद्दिगभिमुखम्) प्रयतेन सविधिना कार्यम्। __ अर्थ - कतिपय आचार्य कहते हैं कि जिस दिशा में यात्रार्थी यात्रा करना चाहता है उस ओर ५०० धनुष दूरी तक उसे प्रस्थान करना चाहिए। कुछ एक मुनियों का मत है कि स्वभवन से २०० धनुष की दूरी तक प्रस्थान करें। अन्य मुनिजन कहते हैं अपने घर से १० धनुष अर्थात् ४० हाथ की दूरी तक प्रस्थान करना भी प्रमाण ही जानना चाहिए। धनुष परिमाण-(भास्कराचार्य) यवौदरैरंगुलमसंख्यै हस्तोऽगुलैः षड्गुणितैश्चतुभिः । हस्तैश्चतुर्भिर्भवतीय दण्डः क्रोश सहस्त्रद्वितयेन तेषाम् ॥ अर्थ - आठ जौ भूमि पर रखे जाने से वे जौ अपने मध्यभागों से जितना स्थान घेरते हैं, उसे अंगुल कहते हैं तथा २४ अंगुलों का एक हाथ परिमाण होता है। चार हाथों का एक दण्ड (धनुष) और दो हजार दण्डों का १ कोश होता है। राजमार्तण्ड ने यात्रार्थी द्वारा स्वयं प्रस्थान के गुण बतलाये हैं-यथा स्वशरीरेण यः कश्चिन्निर्गच्छेच्छद्धयान्वितः । तस्य यात्राफलं सर्वं सम्पूर्ण पथि सिध्यति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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