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________________ नियुक्तिपंचक ४७६. सो समणो पव्वइओ, धम्मं सोऊण तस्स समणस्स । जयघोस-विजयघोसा, सिद्धिगया खीणसंसारा ॥ जण्णइज्जस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता ४७८. ४७७. निक्खेवो सामम्मि य, चउव्विहो 'दुविहो य'' होइ दवम्मि । आगम-नोआगमतो, नोआगमतो य सो तिविहो ।। जाणगसरीरभविए, तव्वतिरित्ते य सक्करादीसु । भावम्मि दसविहं खलु, इच्छामिच्छादियं होति ।। ४७८।१. इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा' ।। ४७८।२. उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ। एएसि तु पयाणं, पत्तेयपरूवणं वोच्छं ।। आयारे निवखेवो, चउक्कओ दुविहो य होइ दवम्मि । आगम-नोआगमतो, नोआगमतो य सो तिविहो । ४८०. जाणगसरीरभविए, तव्वतिरित्ते य नमणमादीसु। भावम्मि दसविधाए, सामायारीय आयरणा ।। ४८१. इच्छादिसाममेसुं, आयरणं वण्णियं तु जम्हेत्थ । तम्हा सामायारी, अज्झयणं होइ नायव्वं ।। सामायारीनिज्जुत्ती सम्मत्ता ४७९. १. दुब्विहो (शां)। लिखते । इसके अतिरिक्त ४७८/२ में 'पत्तेय २. कोष्ठकवर्ती दोनों गाथाओं का संकेत चणि परूवणं वोच्छं' के उल्लेख से भी स्पष्ट है कि में नहीं मिलता है। वृत्तिकार शान्त्याचार्य ये गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र से बाद में (प. ५३२) तथा नेमिचंद्र (प. ३१०) ने इनको जोड़ी गयी हैं क्योंकि उत्तराध्ययन में दसों नियुक्तिकृद् माना है। ये दोनों गाथाएं आव- सामाचारियों का विस्तृत वर्णन है। यहां तो श्यक नियुक्ति ६६६,६६७ की हैं। ऐसा संभव केवल नामोल्लेख मात्र है। लगता है कि प्रसंगवश लिपिकारों या आचार्यो ३. आवनि ६६६, अनुद्वा २३९।१। द्वारा ये गाथाएं बाद में जोड़ दी गई हैं। ४. आवनि ६६७, अनुद्वा २३९।२। इसका प्रबल प्रमाण है कि ४७८ की गाथा ५. ४७९-८१ तक की तीन गाथाओं के लिए के अंतिम चरण में 'इच्छामिच्छादियं होति' चणि में 'आयारे निक्खेवो इत्यादिगाथात्रयं' का उल्लेख है। यदि नियुक्तिकार दसों का मात्र इतना उल्लेख है। नामोल्लेख करते तो यह चरण अलग से नहीं ६. ०णाईसुं (शां)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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