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________________ तीर्थंकर चरित्र यशश्वी के 'अभिवन्द्र' और 'प्रीतिरूपा' हुए । अभिचन्द्र चौथा कुलकर हुआ । उनके 'प्रसेनजित्' और 'चक्षुकान्ता' हुए । प्रसेनजित् नामके पाँचवें कुलकर के समय स्थिति में विशेष उतार आया, तब उसने ‘धिक्कार' नीति अपनाई । इनके 'मरुदेव' और 'श्रीकान्ता हुए । मरुदेव छठे कुलकर हुए । इनके अंतिम (सातवें) कुलकर 'नाभि' और (मरुदेवा' जन्मे । मरुदेवा के गर्भ में अवतरण तीसरे आरे के चौरासौ लाख पूर्व और ८९ पक्ष (तीन वर्ष साढ़े आठ मास ) शेष रहे, तब आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्र का योग होने पर महर्षि वज्रनाभजी' का जीव, सर्वार्थसिद्ध महाविमान में ३३ सागरोपम का आयु पूर्ण कर के, नाभि कुलकर की मरुदेवा पत्नी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। इनके गर्भ में आने पर तीनों लोक में सुख और उद्योत हुआ और श्री मरुदेवाजी ने चौदह महास्वप्न देखे । वे इस प्रकार थे १ उज्ज्वल वर्ण, पुष्ट स्कन्ध और बलिष्ठ शरीर वाला एक वृषभ देखा । जिसके गले में स्वर्ण की घुघरमाल पहनी हुई थी। २ दूसरे स्वप्न में श्वेत वर्ण वाला पर्वत के समान ऊँचा और चार दाँत वाला गजराज देखा । ३ केशरीसिंह ४ लक्ष्मीदेवी ५ पुष्पमाला ६ चन्द्रमा ७ सूर्य ८ महाध्वज ९ स्वर्ण-कलश १० पद्म-सरोवर ११ क्षीर-समुद्र १२ देवविमान १३ रत्नों का ढेर और १४ धूम्र-रहित प्रकाशमान् अग्नि । ये महा मंगलकारी चौदह स्वप्न देखे । स्वप्न देख कर जाग्रत हुई मरुदेवा हर्षित हुई और नाभि कुलकर को मीठे वचनों से स्वप्नों का वृत्तान्त सुनाया । नाभि कुलकर ने अपनी सहज बुद्धि से विचार कर के कहा--" तुम्हारे एक ऐसा पुत्र होगा, जो महान् कुलकर होगा।" वास्तव में गर्भस्थ जीव भविष्य में होने वाले तीर्थंकर भगवान् थे। उस समय इन्द्रों के आसन कम्पायमान हुए । इन्द्रों ने अवधिज्ञान से आसन कम्पने का कारण जाना । सभी इन्द्र मरुदेवाजी के पास आये और विनयपूर्वक स्वप्न का वास्तविक अर्थ बताते हुए कहा + --- +बह कर्मभमि के प्रारम्भ का समय था। उस समय ज्योतिष शास्त्र के जानने वाले नहीं थे। अतएव यह काम इन्द्रों को करना पड़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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