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________________ भ० सुमतिनाथजी--धर्मदेशना १७३ कर्म के योग्य शुभाशुभ फल का अनुभव करता है । इसी प्रकार मोक्ष रूपी महाफल भी जीव अकेला ही प्राप्त करता है । पर के सम्बन्धों का आत्यन्तिक वियोग ही मोक्ष है। मोक्ष में मुक्त आत्मा अकेली ही अपने निज-स्वभाव में रहती है। जिस प्रकार हाथ, पाँव, मुख और मस्तक आदि रस्सी से बाँध कर समुद्र में डाला हुआ मनुष्य, पार पहुँचने के योग्य नहीं रहता, किंतु खुले हाथ-पांव वाला व्यक्ति तैर कर किनारे लग जाता है, उसी प्रकार कुटुम्ब, धन और देवादि में आसक्ति रूपी बन्धनों में जकड़ी हुई आत्मा, संसार-समुद्र का पार नहीं पा सकती और उसी में दुःखपूर्वक डूबतीउतराती रहती है। इसके विपरीत पर की आसक्ति से रहित, अकेली स्वतन्त्र--बन्ध रहित बनी हुई आत्मा, भव-समुद्र से पार हो जाती है। इसलिए सभी सांसारिक सम्बन्धों को त्याग कर के एकाकी भाव युक्त हो कर शाश्वत सुखमय मोक्ष के लिए प्रयत्न करना चाहिए। एक उत्पद्यते जंतुरेक एव विपद्यते । कर्माण्यनुभवत्येकः प्रचितानि भवांतरे ॥ १ ॥ अन्यैस्तेनाजितं वित्तं, भूयः संभूय भुज्यते । सत्वेको नरकक्रीडे, क्लिश्यते निजकर्मभिः ॥ २ ॥ अर्थात्--यह जीव भवान्तर में अकेला ही उत्पन्न होता है, अकेला ही मरता है और अपने किये हुए कर्मों का फल--इस भव में या पर भव में--अकेला ही अनुभव करता है। ___ एक व्यक्ति के उपार्जन किये हुए द्रव्य का दूसरे अनेक मिल कर उपभोग करते हैं, किन्तु पाप-कर्म कर के धन का उपार्जन करने वाला व्यक्ति, अपने कर्मों से नरक में जा कर अकेला ही दुःखी होता है। इसलिए एकत्व भावना का विचार कर के आत्महित साधना चाहिए। प्रभु के 'चमर' आदि एक सौ गणधर हुए, ३२०००० साधु, ५३०००० साध्वियें, २४०० चौदहपूर्वी, ११००० अवधिज्ञानी, १.४५० मनःपर्यवज्ञानी, १३००० केवलज्ञानी, १८४०० वैक्रिय लब्धिधारी, १०६५० वाद लब्धिधारी, २८१००० श्रावक और ५१६००० श्राविकाएँ हुई। __ केवलज्ञान होने के बाद भगवान् बीस वर्ष और बारह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व तक भाव तीर्थंकरपने, इस पृथ्वी-तल पर विचरते रहे और एक मास के अनशन से समेदशिखर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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