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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २४ 'दुगआइ दसंतुदया' अर्थात् दो से लेकर दस तक के प्रत्येक उदयस्थान किसी को क्रोध का, किसी को मान का, किसी को माया का और किसी को लोभ का उदय होने से एक समय में अनेक जीवों की अपेक्षा चार प्रकार के होते हैं- 'कसायभेया चउव्विहा'। इन चारों भेद वालों के-क्रोधी, मानी, मायी अथवा लोभी-चाहे किसी भी कषाय के उदय वाले हों-तीन वेदों में से किसी भी वेद का उदय होता है, जैसे कि क्रोध के उदय वाले को पुरुषवेद का उदय हो सकता है, स्त्रीवेद का भी अथवा नपुसकवेद का भी उदय हो सकता है। इसी प्रकार मानी, मायी और लोभी को भी तीन वेदों में से किसी भी वेद का उदय हो सकता है। जिससे तीन वेदों से गुणा करने पर बारह भंग होते हैं—बारसहा वेयवसा । इन बारह प्रकार वालों में से किसी को हास्य-रति का अथवा किसी को शोक-अरति का उदय होता है । जैसे—क्रोधी पुरुषवेद के उदय वाले को हास्य-रति का उदय हो सकता है, वैसे ही उसको शोक-अरति का भी उदय हो सकता है। इसी प्रकार क्रोधी स्त्रीवेद के उदय वाले और क्रोधी नपुसकवेद के उदय वाले के भी दो में से चाहे किसी एक युगल का उदय हो सकता है। इसी तरह मानी, मायी, लोभी पुरुषवेदादि किसी भी वेद के उदय वाले को दोनों में से किसी भी एक युगल का उदय हो सकता है। जिससे चार से लेकर दस तक के सभी उदय युगल की अपेक्षा पूर्व से दुगने होते हैं, यानी चौबीस भंग होते हैं। इसी को चौबीसी कहते है। दो का उदय हो तब युगल का उदय नहीं होने से चार कषाय को २. वेद के साथ गुणित करने पर बारह ही भंग होते हैं तथा चार से दस तक के उदयस्थानों में कषाय, वेद और युगल का उदय होने से चार कषाय का तीन वेद के साथ गुणा करने पर बारह और बारह को युगलद्विक से गुणा करने पर चौबीस भंग होते हैं। अब ये चौबीस भंग एक-एक गुणस्थान में अनेक प्रकार से होने के कारण को स्पष्ट करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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