SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ पंचसंग्रह : १० द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक ये छह उदयस्थान होते हैं और इन छह में से इकत्तीस प्रकृतिक के सिवाय पांच उदयस्थान प्राकृत (सामान्य) मनुष्यों को जानना चाहिये। क्योंकि इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान उद्योत नाम सहित है और प्राकृत मनुष्यों के उद्योत का उदय नहीं होता है। वैक्रिय और आहारक शरीर की विकुर्वणा करते मनुष्य, तिर्यचों के पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतियों के उदय रूप पांच उदयस्थान होते हैं। मात्र मनुष्यों में उद्योत का उदय वाला उदयस्थान वैक्रिय या आहारक शरीरी यति को होता है। वैक्रिय शरीर करते वायुकायिक को चौबीस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृति रूप तीन उदयस्थान होते हैं और तेज-वायुकायिक जीवों में उद्योत का उदय न होने से उनको सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान नहीं बताया है। अब एकेन्द्रियों के उक्त उदयस्थानों का विचार करते हैं। एकेन्द्रियों के उदयस्थान गइआणुपुविजाई थावरदुभगाइतिणि धुवउदया। एगिदियइगिवीसा सेसाण व पगइ वच्चासो ॥७९॥ शब्दार्थ-गइआणुपुध्विजाई-गति, आनुपूर्वी, (एकेन्द्रिय) जाति, थावरदुभगाइतिण्णि-स्थावरत्रिक दुर्भगत्रिक, ध्रुव उदया-ध्र वोदया बारह प्रकृति, एगिदिय-एकेन्द्रिय को, इगिवीसा-इक्कीस प्रकृति, सेसाण- शेष जीवों के लिये, व-और, पगइ-प्रकृतियों का, वच्चासो---परिवर्तन । गाथार्थ-गति, आनुपूर्वी, (एकेन्द्रिय) जाति, स्थावरत्रिक, दुर्भगत्रिक और ध्र वोदया बारह प्रकृति कुल मिलाकर इन इक्कीस प्रकृतियों का उदय भवान्तर में जाने पर एकेन्द्रियों को होता है । शेष जीवों के लिये प्रकृतियों का व्यत्यास करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy