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________________ पंचसंग्रह : उपशान्ताद्धा में प्रवेश करता है तो उसके पहले समय से ही वह उपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है । जो मोक्ष का बीज रूप - कारण रूप है । क्योंकि सम्यक्त्व के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता है । ३० उवरिमठिइ अनुभागं तं च तिहा कुणइ चरिममिच्छुदए । देसाईगं इयरेणं मिच्छमी साई ॥ २२ ॥ सम्मं सम्मे थोवो मीसे असंखओ तस्ससंखओ सम्मे । पइसमयं इय खेवो अन्तमुहुत्ता उ विज्झाओ ||२३|| शब्दार्थ - उवरिमठिइ - ऊपर की (द्वितीय) स्थिति के अनुभागं - अनुभागरस को, तं - उसको, च-और, तिहा— तीन प्रकार का, कुणइकरता है, चरिममिच्छुदए - चरम समय मिथ्यात्व के उदय में, देसघाईणं देशघाति, सम्म – सम्यक्त्वमोहनीय को, इयरेगं --- इतर सर्वघाती, मिच्छमीसाई -- मिश्र और मिथ्यात्व मोहनीय को । में सम्मे – सम्यक्त्व में, थोवोस्तोक- अल्प, मोसे - मिश्र में, असंखओअसंख्यात गुण, तस्ससंखओ – उससे भी असंख्यात गुण, सम्मे – सम्यक्त्व में, पइसमयं - प्रत्येक समय, इय-यह, खेवो -- प्रक्षेप, अन्तमुहुत्ता - अन्तर्मुहूर्त, उ -- और, विज्झाओ - - विध्यातसंक्रमण | - १ अन्तरकरण में मिथ्यात्व के दलिक नहीं होने से उसके पहले समय में ही उपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है । जितने समय में भोगने योग्य दलिकों को हटाकर भूमि साफ की उतने समय को उपशान्ताद्धा अथवा अन्तरकरण कहा जाता है । उपशम सम्यक्त्व प्राप्त होने में मिथ्यात्व प्रतिबंधक है । अन्तरकरण में उसके नहीं होने से उपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है । जब तक शुद्ध की हुई भूमि शुद्धभूमि रूप में रहती है, तब तक ही सम्यक्त्व भी रहता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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