SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदार अर्थ सहयोगी धर्मप्रेमी उदारमना श्रीमान एल. सुगनचन्द जी गुगलिया श्रीमान सुगनचन्द जी जैन (गुगलिया) मारवाड़ में कूकड़ा निवासी हैं। ____ आपके पूज्य पिताजी श्री लक्ष्मीचन्द जी जीवराजजी गुगलिया धर्मप्रेमी गुरुभक्त श्रावक थे। पूज्य गुरुदेव श्रमणसूर्य मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जी म० सा० के प्रति आपकी अत्यधिक श्रद्धा भक्ति थी। वे धर्म साधना, जीवदया आदि कार्यों में सतत जीवन को कृतार्थ करते रहते थे। अपने व्यवसाय के साथ समाज-सेवा में भी आप पूरा समय तथा सहयोग देते थे । ___ आपके सुपुत्र श्रीमान सुगनचन्द जी सा० भी पिताश्री की तरह धर्म एवं गुरु के प्रति अनन्य भक्ति भाव रखते हैं । समय समय पर समाज-सेवा, साहित्य प्रचार तथा अन्य विविध सुकृत कार्यों में आप उदारता पूर्वक लक्ष्मी का सदुपयोग करते रहते हैं। पूज्य गुरुदेव श्री मरुधर केसरी जी म० के प्रति आपकी प्रगाढ़ श्रद्धा थी। वर्तमान में गुरुदेव श्री के आज्ञानुवर्ती तपस्वी मरुधरारत्न श्री रूपचन्दजी महाराज 'रजत' तथा गुरुदेव श्री के प्रमुख शिष्य मरुधराभूषण श्री सुकन मुनि जी म० आदि के प्रति भी उसी प्रकार अद्धाशील है। पंचसंग्रह के प्रकाशन में आपने पूज्य पिताजी लक्ष्मीचन्द जी गुगलिया की पुण्य स्मृति स्वरूप उदारता पूर्वक अर्थ सहयोग प्रदान किया है । तदर्थ संस्था आपकी आभारी रहेगी। मंत्रीआचार्य श्री रघनाथ जैन शोध संस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy