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________________ पंचसंग्रह : गाथार्थ - शेष काल में (किटिवेदनाद्धा काल में ) सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान होता है। सूक्ष्म किट्टियों की उतनी ही ( दसवें गुणस्थान के काल जितनी ) प्रथमस्थिति करता है तथा चरमसमय में की गई किट्टियों का नीचे का असंख्यातवाँ भाग और प्रथम समय में की गई किट्टियों का ऊपर का असंख्यातवाँ भाग छोड़कर शेष किट्टियों की उदीरणा करता है । विशेषार्थ - लोभ की प्रथमस्थिति को अश्वकर्णकरणाद्धा, किट्टि - करणाद्धा और किट्वेिदनाद्धा इस प्रकार तीन भागों में विभाजित करता है। उनमें के प्रथम दो भागप्रमाण प्रथमस्थिति का अनुभव नौवें गुणस्थान में करता है । उन दो भाग जितने काल में अपूर्वस्पर्धक और किट्टियां होती हैं और तीसरे किट्टिवेदनाद्धा विभाग में किटिकरणाद्धाकाल में की गई किट्टियों का वेदन करता है और उस समय सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान होता है। इस गुणस्थान में द्वितीयस्थिति में रही हुई किट्टियों में की कितनी ही किट्टियों को खींचकर उनकी अपने काल प्रमाण प्रथमस्थिति करता है । किट्टिकरणाद्धा काल की शेष रही उदयावलिका को स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमित कर अनुभव करता है । दो समय न्यून दो आवलिका काल का बंधा हुआ दलिक जो अनुशमित शेष है, उसको इस गुणस्थान में उतने हो काल में उपशमित करता है । सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान के प्रथम समय में जो किट्टियां उदय में आती हैं उनमें की पहले और अन्तिम समय में की गई किट्टियों को छोड़कर प्राय: 1 उदय में आती हैं। प्रथम स्थिति में इस प्रकार से ११० १ यहाँ प्रायः शब्द देने का कारण यह प्रतीत होता है कि गई किट्टियों का ऊपर का असंख्यातवाँ भाग यानि किट्टियों को छोड़कर और अन्तिम समय में की गई का असंख्यातवाँ भाग यानि को उदीरणा द्वारा खींचकर परन्तु उदीरणा द्वारा पहले आती हैं । Jain Education International पहले समय में की उत्कृष्ट रस वाली किट्टियों का नीचे मन्दरस वाली किट्टियों को छोड़कर शेष अनुभव करता है । अर्थात् उदय द्वारा नहीं और अन्तिम समय की किट्टियां उदय में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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