SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० पंचसंग्रह : ८ गाथार्थ-तिर्यंचगति की उत्कृष्ट प्रदेशोदी रणा का स्वामी देशविरत, आनुपूर्वी और गति (देव, नारक गति) का क्षायिक सम्यग्दृष्टि, दुर्भग आदि और नीचगोत्र का विरति के सन्मुख हुआ अविरत सम्यग्दृष्टि है। विशेषार्थ-तिर्यंचगति की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का स्वामी देशविरत है तथा उस-उस गति में अपनी आयु के उदय के तीसरे समय में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि चार आनुपूर्वी की1 और वही क्षायिक सम्यग्दृष्टि देव-नरक गति की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का स्वामी है तथा विरति प्राप्त करने के सन्मुख हुआ यानि अनन्तर समय में जो संयम को प्राप्त करेगा ऐसा वह अविरतसम्यग्दृष्टि दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयश:कीति और नीचगोत्र की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का स्वामी है । तथा - देवनिरयाउगाणं जहण्णजेट्ठट्ठिई गुरुअसाए । इयराऊणं इयरा अट्ठमवासेठ्ठ वासाऊ ॥८६॥ शब्दार्थ--देवनिरयाउगाणं--देव और नरक आयु की, जहणजेठट्ठिई-जवन्य और उत्कृष्ट स्थिति वाला, गुरुअसाए---गुरु असाता का उदयवाला, इयराऊगं-इतर आयु (मनुष्य तिर्यंचायु) की, इयरा- इतर (मनुष्य तिर्यंच), अट्ठमवासेठ्ठ वासाऊ-आठ वर्ष की आयु वाला आठवें वर्ष में वर्तमान । गाथार्थ-देवायु और नरकायु की उत्कृष्ट प्रदेशोदी रणा का स्वामी गुरु असाता (दुःख) का उदय वाला अनुक्रम से जघन्य और उत्कृष्ट आयु वाला देव नारक है तथा इतर (मनुष्यायु और तिर्य __ कर्म प्रकृति में कहा है कि नरक-तिर्यंचानुपूर्वी की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का स्वामी क्षायिक सम्यग्दृष्टि और शेष दो आनुपूर्वियों की उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा का स्वामी सामान्य सम्यग्दृष्टि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy