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________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११,१२ ४१ इसके पश्चात् संज्वलन क्रोध की प्रथम स्थिति समय न्यून तीन आवलिका शेष रहे तब वह भी पतद्ग्रह नहीं रहता है, अतः चार में से उसे दूर करने पर शेष तीन के पतद्ग्रहस्थान में पूर्वोक्त ग्यारह प्रकृतियां संक्रमित होती हैं और वे भी तब तक संक्रमित होती हैं, यावत् समय न्यून दो आवलिका काल जाये । उसके बाद अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण ये दोनों क्रोध उपशांत हों तब नौ प्रकृतियां पूर्वोक्त तीन के पतद्ग्रहस्थान में समय न्यून दो आवलिका काल पर्यन्त संक्रांत होती हैं । तत्पश्चात् संज्वलन क्रोध उपशमित हो तब आठ प्रकृतियां अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त तीन के पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । 1 तदनन्तर संज्वलन मान की प्रथम स्थिति समय न्यून तीन आवलिका शेष रहे तब संज्वलन मान भी पतद्ग्रह नहीं होता है, अतः तीन में से उसे निकालने पर शेष दो के पतद्ग्रह में पूर्वोक्त आठ प्रकृतियां समय न्यून दो आवलिका काल पर्यन्त संक्रमित होती हैं । उसके बाद अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण ये दोनों मान उपशमित हों तब छह प्रकृतियां दो के पतद्ग्रहस्थान में समय न्यून दो आवलिका पर्यन्त संक्रमित होती हैं । उसके बाद संज्वलन मान का उपशमन हो तब पांच प्रकृतियां दो के पतद्ग्रहस्थान में अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रमित होती हैं । तत्पश्चात् संज्वलन माया की प्रथम स्थिति समय न्यून तीन आवलिका शेष रहे तब संज्वलन माया भी पतद्ग्रह रूप नहीं रहती है, इसलिये दो में से उसे कम करने पर शेष संज्वलन लोभ रूप पतद्ग्रह स्थान में वे पांच प्रकृतियां समय न्यून दो आवलिका काल पर्यन्त संक्रमित होती हैं । उसके बाद अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण माया का उपशम हो तब शेष तीन प्रकृतियां संज्वलन लोभ में संक्रांत होती हैं । वे तब तक संक्रमित होती हैं यावत् समय न्यून दो आवलिका काल जाये । तत्पश्चात् संज्वलन माया उपशमित हो तब अप्रत्याख्यानावरण, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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