SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६,७,८ २६५ का असंख्यातवां भाग ही रहता है और आवलिका पूर्ण होने पर निक्षेप बढ़ता है। __ तीसरी गाथा के दूसरे पद में आगत 'इति' शब्द उद्वर्तना की वक्तव्यता की समाप्ति का सूचक है। जिसका यह अर्थ है कि जब तक नवीन स्थितिबंध पहले से सत्ता में रही हुई स्थिति से आवलिका के दो असंख्यातवें भाग अधिक नहीं होता है, तब तक पहले से सत्ता में रही हुई स्थिति में की चरम स्थितिस्थान से एक आवलिका और आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति की उद्वर्तना नहीं की जाती है। उससे नीचे की स्थिति की ही जीवस्वभाव से उद्वर्तना होती है। उसमें भी जब असंख्यातवें भाग अधिक आवलिका को उलांघकर नीचे के स्थान की उद्वर्तना होती है तब उसके ऊपर के स्थान से आवलिका को उलांघकर ऊपर के आवलिका के असंख्यातवें भाग में निक्षेप किया जाता है। और उससे नीचे की दूसरी स्थिति की उद्वर्तना की जाती है तब समयाधिक असंख्यातवें भाग में निक्षेप किया जाता है। १ इस समय निक्षेप की विषयरूप स्थिति आवलिका के दो असंख्यातवें भाग और तीसरा अपूर्ण असंख्यातवां भाग होना चाहिए । क्योंकि सत्तागत स्थिति के चरम स्थान से लेकर आवलिका और आवलिका के असंख्यात भाग के नीचे के स्थान की उद्वर्तना की जाती है और नवीन स्थितिबंध सत्तागत स्थिति से कुछ न्यून आवलिका के दो असंख्यातवें भाग अधिक है, जिससे यहाँ जिस स्थान की उद्वर्तना होती है, उसके ऊपर के स्थान से अतीत्थापना-आवलिका का उल्लंघन करने पर निक्षेप की विषयरूप स्थिति आवलिका के दो असंख्यातवें भाग अधिक है । जिससे यहाँ जिस स्थान की उद्वर्तना होती है, उसके ऊपर के स्थान से अतीत्थापनावलिका को उलांघने पर निक्षेप की विषय रूप स्थिति आवलिका से दो असंख्यातवें भाग और तीसरा अपूर्ण असंख्यातवां भाग संभव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy