SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह : ६ उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ६९ से ६० के अंक तक बताया है । ३३८ C. जिस जघन्य स्थितिस्थान के अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए थे, उससे नीचे के स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे ३२ के अंक से बताया है । १०. उसके बाद पुनः १८ कोडाकोडी सागरोपम सम्बन्धी अन्त्यस्थिति से लेकर नीचे कण्डक प्रमाण स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग मनन्तगुण कहना, जिसे प्रारूप में ५ से ५० के अंक तक बताया है । ११. उसके बाद जिस स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग कहकर निवृत्त हुए थे, उससे नीचे के स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ३१ के अंक से प्रदर्शित किया है । १२. उससे भी पुन: पूर्वोक्त कण्डक ( ५६ - ५० ) से नीचे कण्डक प्रमाण स्थितियों का अनुक्रम से नीचे-नीचे उतरते-उतरते उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण- अनन्तगुण कहना । जिसे ४६ से ४० के अंक तक बताया है । १३. इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कण्डकमात्र स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग तब तक कहना चाहिए यावत् अभव्य प्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के विषय में जघन्य स्थिति आती है । १४. जिस स्थितिस्थान के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए थे, उसके अधोवर्ती स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ३० के अंक से बताया है । इसके बाद अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के नीचे प्रथम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ३० के अंक के सामने ४० के अंक से बताया है । १५. इसके बाद पुनः प्रागुक्त जघन्य अनुभागबंध की स्थिति के नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे २६ के अंक से बताया है । उसके बाद अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग से नीचे द्वितीय स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तनुण है । जिसे २६ के अंक के सामने ३६ के अंक से बताया है ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy