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________________ २०२ पंचसंग्रह : ६ की दूसरी स्थिति में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे कंडक की दूसरी स्थिति में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण, इस प्रकार कंडक के अंतर से एकएक स्थान में उत्कृष्ट और एक-एक स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण क्रम से वहां तक कहना चाहिये यावत् असातावेदनीय की उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य रस अनन्तगुण हो । कंडक प्रमाण अंतिम स्थितियों में उत्कृष्ट रस अभी अनुक्त है, वह भी पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर उत्कृष्ट स्थितिस्थान पर्यन्त अनन्तगुण क्रम से कहना चाहिये। स्थावरदशक और नरकद्विक आदि सत्ताईस प्रकृतियों की तीव्रमंदता इसी प्रकार समझना चाहिये। अब सातावेदनीय की तीव्र मंदता का कथन करते हैं। सातावेदनीय की तीवमंदता... 'सायस्सवि' अर्थात् साता की तीव्रमंदता असाता की तीव्रमंदता के अनुरूप कहना चाहिये किन्तु उसकी शुरुआत उत्कृष्ट स्थिति से करना चाहिये-'नवरि उक्कसठिइओ ।' वह इस प्रकार-साता की उत्कृष्ट स्थिति बांधते जघन्य अनुभाग अल्प, समयोन उत्कृष्ट स्थिति बांधते जघन्य अनुभाग उतना ही बंधता है। दो समयन्यून उत्कृष्ट स्थिति बांधने पर भी जघन्य अनुभाग उतना ही बंधता है। इस प्रकार पूर्व-पूर्व से उत्तरोत्तर स्थितिस्थान बांधते उतना ही जघन्य रस का बंध वहां तक कहना चाहिये यावत् अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिस्थान आये । जितने स्थितिस्थानों में असाता के साथ परावर्तमान भाव से बंधता है उतने स्थितिस्थानों में पूर्व के स्थान में जितना जघन्य रस बंधता है, उतना ही उत्तर-उत्तर के स्थान में बंधता है । इसका कारण यह है कि रसबंध के हेतुभूत जो अध्यवसाय पूर्व के स्थान में हैं, वही उत्तर के स्थान में भी हैं। ___ उससे निचले स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे उसके नीचे के स्थितिस्थान में जघन्य रस अनन्तगुण, इस प्रकार
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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