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________________ पंचसंग्रह : ६ अनन्तगुण, इस प्रकार अनन्त अनन्त गुण करते हुए कंडक की अंतिम जघन्य स्थिति में उत्कृष्ट रस अनन्त गुण कहना चाहिये । १६८ अपरावर्तमान शुभाशुभ प्रकृतियों में इस प्रकार से तीव्रमंदता जानना चाहिये' । अब परावर्तमान अशुभ-शुभ प्रकृतिवर्ग आदि की तीव्रमंदता का विचार कहते हैं ! परावर्तमान अशुभ शुभ प्रकृतियों आदि की तीव्रमंदता :अस्सायजहन्नठिठाणेह तुल्लयाई सव्वाणं । आपडिवक्खक्तग ठिईणठाणाई हीणाई ॥६५॥ तत्तो अनंतगुणणाए जंति कंडस्स संखियाभागा । तत्तो अनंतगुणियं जहन्नठिई उक्कस्सं ठाणं ॥ ६६ ॥ एवं उक्कस्साणं अनंतगुणणाए कंडकं वयइ । एकं जहन्नठाणं जाइ परक्कंतठाणाणं ॥६७॥ उवरि उवघायसमं सायस्सवि नवरि उक्कस ठिइओ । अंतेसुवधायसमं मज्झे नीरससायसमं ॥ ६८ ॥ शब्दार्थ - अस्साय -- असाता के, जहन्नठिईठाणे - जघन्य स्थितिस्थान के, तुल्लयाई — तुल्य, सव्वाणं – सबका, आपडिवक्खक्कंतग – प्रतिपक्ष से आक्रांत ठिईणठाणाइं- स्थिति के स्थानों का, होणाई - हीन, जघन्य । --- तत्तो - उसके बाद, अनंतगुणणाए - अनन्त गुणाकार, जंति होता है, कंडस्स — कंडक के संखियाभागा - संख्यात भाग पर्यन्त तत्तो—उसके बाद, अनंतगुणियं - अनन्तगुण, जहन्न ठिई — जघन्यस्थिति, उक्कस्सं - उत्कृष्ट, ठाणं —स्थान | एवं - इसी प्रकार, उक्कस्साणं - उत्कृष्ट स्थानों का, अनंतगुणणा - १. अपरावर्तमान शुभ-अशुभ प्रकृतिवर्ग की तीव्रमन्दता का प्रारूप परिशिष्ट में देखिये ।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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