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________________ बंधनकरण - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २४ गुणहानि इन तीन पूर्व की हानियों को छोड़कर शेष रही असंख्यातगुणहानि, अनन्तगुण हानि, इन दो हानियों बाली है । ७३ अनन्तगुणहानि में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे की कितनी ही वर्गणायें पूर्वोक्त चार हानियों के सिवाय अपने नाम की हानि वाली अर्थात् अनन्तगुणहानि वाली होती हैं । सारांश यह है कि जिस हानि का वर्णन करना हो उसको अपनेअपने नाम के क्रम से प्रारंभ कर उत्तर की सभी हानियों का नामोल्लेख करना चाहिये, किन्तु पूर्व की हानियों को छोड़ दें । इस तरह मूल हानिपंचक और उत्तर हानिपंचक इन दो प्रकारों से परंपरोपनिधा प्ररूपणा जानना चाहिये । अब इनके अल्प बहुत्व का विचार करते हैं पंचहानिगत वर्गणाओं का अल्पबहुत्व थोवाओ वग्गणाओ पढमहाणीय उवरिमासु कमा । होंति अनंतगुणाओ अनंतभागो पएसागं ॥ २४ ॥ वग्गणाओ - वर्गणायें, पढम शब्दार्थ - थोवाओ - स्तोक, अल्प, हाणीए - - प्रथम हानि में, उवरिमासु — उत्तरवर्ती में, कमा - अनुक्रम से होंतिहोती हैं, अनंतगुणाओ - अनन्तगुण, अनंतभागो - अनन्तवें भाग, पएसाणंप्रदेशों का । गाथार्थ - प्रथम हानि में वर्गगायें अल्प हैं और उसके बाद की उत्तरवर्ती हानियों में अनुक्रम से अनन्तगुण वर्गणायें होती हैं और प्रदेशों का अनन्तवां भाग होता है । विशेषार्थ - - ' थोवाओ वग्गणाओ पढमहाणीए' अर्थात् स्नेहाणुओं की वृद्धि और परमाणुओं की हानि के साथ बनने वाली वर्गणाओं में पहली हानि का नाम असंख्यात भाग हानि है । उसमें वर्गणायें सबसे कम होती हैं, उससे उत्तरवर्ती होने वाली हानियों में अनुक्रम से अनन्त-अनन्तगुण वर्गणायें होती हैं- 'उवरिमासु कमा होंति अनंत
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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