SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह उदय क्रमपूर्वक होता है, युगपत् नहीं । हास्य का उदय होने पर रति का उदय तथा शोक का उदय होने पर अरति का उदय अवश्य होता है। इसीलिए हास्य-रति और शोक-अरति, इन दोनों युगलों को ग्रहण करने के लिए दो का अंक रखने का संकेत किया है। इसके बाद तीन वेदों का क्रमपूर्वक उदय होने से वेद के स्थान पर तीन का अंक रखना चाहिये और क्रोध, मान, माया और लोभ का क्रमपूर्वक उदय होने से कषाय के स्थान पर चार का अंक रखना चाहिए । यद्यपि दस हेतुओं में अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन तीन कषायों के भेद से तीन हेतु लिए हैं। परन्तु अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का उदय होने पर उसके बाद के प्रत्याख्यानावरणादि क्रोध का उदय अवश्य होता है । इसी प्रकार मान आदि का उदय होने पर तीन मानादि का एक साथ उदय होता है । लेकिन क्रोध, मान आदि का उदय क्रमपूर्वक होने से अंकस्थापना में कषाय के स्थान पर चार ही रखे जाते हैं। तत्पश्चात् योग की प्रवृत्ति क्रमपूर्बक होने से योग के स्थान पर दस की संख्या रखना चाहिए। सरलता से समझने के लिए उक्त अंकस्थापना का रूपक इस प्रकार का हैमिथ्यात्व काय इन्द्रिय अविरति युगल वेद कषाय योग ५ ६ ५ २ ३ ४ १० अब इस जघन्यपदभावी अंकस्थापना एवं मध्यम व उत्कृष्ट बन्धहेतुओं से प्राप्त भंगसंख्या का प्रमाण बतलाते हैं। बंधहेतुओं के भंगों का प्रमाण जा बायरो ता घाओ विगप्प इइ जुगवबन्धहेऊणं । अणबन्धि भयदुगंछाण चारणा पुण विमज्झेसु ॥६॥ शब्दार्थ-जा-जहाँ तक, बायरो-बादरसंपराय, ता-वहाँ तक, घाओ-गुणाकार, विगप्प--विकल्प, इइ-इस प्रकार जुगव-एक साथ, बन्धहेऊणं-बन्धहेतुओं के, अणबन्धि--अनन्तानुबंधी, भयदुगंछाणJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy