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________________ सप्ततिका प्रकरण सात प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार है कि एक मिथ्यात्व, दूसरी अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि में से कोई एक तीसरी प्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि में से कोई एक, चौथी संज्वलन क्रोध आदि में से कोई एक, पाँचवीं हास्य, छठी रति अथवा हास्य, रति के स्थान पर अरति शोक और सातवीं तीनों वेदों में से कोई एक वेद, इन सात प्रकृतियों का उदय बाईस प्रकृतियों का बंध करने वाले मिथ्यादृष्टि जीव को नियम से होता है । 1 २ 1 I यहाँ चौबीस भंग होते हैं । वे इस प्रकार हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारों प्रकृतियाँ उदय की अपेक्षा परस्पर विरोधनी होने से इनका उदय एक साथ नहीं होता है । अतः क्रोधादिक के उदय रहते मानादिक का उदय नहीं होता किन्तु किसी एक प्रकार के क्रोध का उदय रहते, उससे आगे के दूसरे प्रकार के सभी क्रोधों का उदय अवश्य होता है । जैसे कि अनन्तानुबंधी क्रोध का उदय रहते अप्रत्याख्याना - वरण आदि चारों प्रकार के क्रोधों का उदय एक साथ होता है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध के उदय रहते प्रत्याख्यानावरण आदि तीनों प्रकार के क्रोधों का उदय रहता है । प्रत्याख्यानावरण क्रोध के उदय रहते दोनों प्रकार के क्रोधों का उदय एक साथ रहता है और संज्वलन क्रोध का उदय रहते हुए एक ही क्रोध उदय रहता है । इस तरह यहाँ सात प्रकृतिक उदयस्थान में अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि तीनों क्रोधों का उदय होता है । इसी प्रकार अप्रत्यख्यानावरण मान का उदय रहते तीन मान का उदय होता है, अप्रत्याख्यानावरण माया का उदय रहते तीन माया का उदय होता है तथा अप्रत्याख्यानावरण लोभ का उदय रहते तीन लोभ का उदय होता है । उक्त क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चार भंगों का उदय स्त्रीवेद के साथ होता है और यदि स्त्रीवेद के बजाय पुरुषवेद का For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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