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________________ गुणस्थानाधिकार १३३ परीत्तासंख्यात, ७. जघन्य युक्तासंख्यात, ८. मध्यम युक्तासंख्यात और ९. उत्कृष्ट युक्तासंख्यात, १०. जघन्य असंख्यातासंख्यात, ११. मध्यम असंख्यातासंख्यातं और १२. उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात, १३. जघन्य परीत्तानन्त, १४. मध्यमपरीत्तानन्त और १५. उत्कृष्ट परीत्तानन्त; १६. जघन्य युक्तानन्त, १७. मध्यम युक्तानन्त और १८. उत्कृष्ट युक्तानन्त, १९. जघन्य अनन्तानन्त, २०. मध्यम अनन्तानन्त और २१. उत्कृष्ट अनन्तानन्त॥७१॥ संख्यात के तीन भेदों का स्वरूप लहु संखिज्जं दुच्चिय, अओ परं मज्झिमं तु जा गुरुअं । जंबूद्दीव पमाणय, - चउपल्लपरुवणाइ इमं । । ७२ । । लघु संख्येयं द्वावेवाऽतः परं मध्यमन्तु यावद्गुरुकम् । जम्बूद्वीपप्रमाणकचतुष्पल्यप्ररूपणयेदम्।। ७२ । अर्थ-दो की ही संख्या लघु (जघन्य) संख्यात है। इससे आगे तीन से लेकर उत्कृष्ट संख्यात तक की सब संख्याएँ मध्यम संख्यात हैं। उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप जम्बूद्वीप -प्रमाण पल्यों के निरूपण से जाना जाता है ।। ७२ ।। भावार्थ- संख्या का मतलब भेद (पार्थक्य) से है अर्थात् जिसमें भेद प्रतीत हो, वही संख्या है। एक में भेद प्रतीत नहीं होता; इसलिये सबसे कम होने पर भी एक को जघन्य संख्यात नहीं कहा है। पार्थक्य की प्रतीति दो आदि में होती है; इसलिये वे ही संस्थाएँ हैं। इनमें से दो की संख्या जघन्य संख्यात और तीन से लेकर उत्कृष्ट संख्यात तक बीच की सब संख्याएँ मध्यम संख्यात हैं। शास्त्र में उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप जानने के लिये पल्यों की कल्पना है, जो अगली गाथाओं में दिखायी है । । ७२ ॥ पल्यों के नाम तथा प्रमाण ग- पडिसलागामहासलागक्खा । पल्लाणवट्ठियसला, जोयणसह सोगाढा, सवेइयंता ससिहभरिया ।। ७३ ।। पल्या अनवस्थितशलाका प्रतिशलाकामहाशलाकाख्याः । योजनसहस्रावगाढाः, सवेदिकान्ताः सशिखभृताः ।। ७३ ।। अर्थ-चार पल्य के नाम क्रमशः अनवस्थित, शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका है। चारों पल्य गहराई में एक हजार योजन और ऊँचाई में जम्बूद्वीप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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