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________________ A२ [परिशिष्टं चतुर्थम् ७८ वैद्याः केसव सुविहि विशेषनाम्नां विभागशोऽनुक्रमणिका। ७९ वैश्यः तत्पत्नी च. धणमित्त सिरी ८० व्याधः सियालदत्त विजया' ८१ शिविका: वेजयंती सम्वट्ठसिद्धा सुदंसणा ८२ शिलाः कोडिसिला नंदिघोसा अइपंडुकंबल सम्वत्थसिद्धि सुमणा। ८३ शुनी पिंगला ८४ शौकरिकाः । भइकट्ठ कट्ठा दारुण " ८५ सर्पाः काकोदर चंडकोसिस ८६ सारथयः तत्पत्यश्च अगडदत्त अमोहरह दारग अमोहप्पहारि जसमती दारुग सिद्धस्थ सुजस अरहदास इंददम कणगमाला कणगवती कामसमिद्ध कुबेरदत्त कुबेरसेण दत्त ८७ सार्थवाहाः तत्पत्त्यश्च जयसेणा धणवसु नागवसु महेसरदत्त समुद्दपिय जिणदास धणसिरी पउमसिरी मित्तसिरी .सव्वट्ठ जिणदासी धणंतरि पउमसेणा मुणिदत्ता सागरदत्त धम्ममित्त पउमावती ललियंगय सामिदत्त धण धम्मिल्ल पहंकरा वइसाणर सायरदत्त धणदत्त धारिणी बहुला वंतामय सिरिदत्ता धणदत्ता नंदा भद वेसाणर सुभद्दा धणदेव नागदत्त भद्दमित्त समुद्द सुरिंददत्त.. धणवती नागदिपणा, मणोरह समुद्ददत्त ८८ सूपकारा: ८९ स्वर्णकारः चित्तसेण नंद सुनंद जिणपालिय कुसला . गंगिला '९० हस्तिनः तंबकल. सेयकंचण असणिवेग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001889
Book TitleVasudevhindi Part 2
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1931
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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