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________________ ३७४ ] सेतुबन्धम् [ नवम विमला-यह ऐरावतादि सुरगजों के संचारमार्ग को धारण करता है । ( सुरगजों के कुम्भस्थलों से लगे) भ्रमर दूर समझ कर सुवेल तक नहीं आये, बीच आकाश से ही लौट गये, अतएव संचारमार्ग नीचे आते समय भ्रमररूप चिह्न होने से व्यक्त है, किन्तु ऊपर जाते समय उसका निकास ( अलियों के पहिले ही चल जाने से ) प्रणष्ट है ॥६१।। रत्नाङ्कुरोद्गममाह थोग्रामहतिमिराई वहमाणं थोअणिग्गअमऊहाई। णितग्गिगबिभणाइ व थोउत्तिष्णरअणङ कुरठाणाई ॥६२।। [ स्तोकाहततिमिराणि वहमानं स्तोकनिर्गतमयूखानि । निर्यदग्निगभितानीव स्तोकोत्तीर्णरत्नाङ कुरस्थानानि ॥ एवं स्तोकमीषदुत्तीर्णानामुद्गतानां रत्नाकुराणां स्थानानि वहमानम् । किंभूतानि । स्तोकं निर्गतो मयूखो येभ्यस्तानि । अत एव स्तोकमाहतं नाशित तिमिरं यत्र । रलाकुराणां स्तोकोद्गमेन मयूखस्यापि स्तोकोद्गमस्तेन च तिमिरस्यापि स्तोक एव नाश इत्यर्थः । उत्प्रेक्षते--निर्यन्नग्निर्यस्मात्तादशगर्भविशिघटानीव । गर्भानियंत्पावकानीवेत्यर्थः। रत्नाङ्कुरस्याग्नितुल्यत्वाद्गभितवह्निस्थानस्यापि स्तोक शिखोद्गमेन स्तोकतिमिरनाश एव भवतीत्याशयः ।।६२।। विमला-यह थोड़ा-थोड़ा उद्गत रत्नाकुरों के स्थानों को धारण करता है, जिनसे कुछ-कुछ किरण निकल रही है, अतएव थोड़ा ही तिमिर का नाश हुआ है, मानों ये स्थान अग्निगभित हैं, जिनके भीतर से थोड़ी-थोड़ी अग्नि उद्गत हो रही है, जिनसे कुछ-कुछ तेज (मयूब) निकल रहा है और अन्धकार का स्वल्प बिनाश हो रहा है ।।६२॥ बनगजयुद्धचिह्नमाह मोडिअपव्वाअदुमे उन्वेल्लावेढभग्गपुञ्जइमलए। वणगमजुजापरिमले वहमाणं पहरपडिप्रदन्तप्फडिहे ॥६३॥ [ मोटितप्रवानद्रुमानुढेलावेष्टभग्नपुञ्जितलतान् । वनगजयुद्धपरिमलान्वहमानं प्रहारपतितदन्तपरिघान् ॥] किंभूतम् । वनगजानां युद्धपरिमलान्युद्धविमर्दान्वहमानम् । किंभूतान् । मोटिताः सन्तः प्रवानाः शुष्कद्रुमा येभ्यस्तान् । एवम्, उद्वेलावेष्टेन गजशरीरस्येत्यर्थाद्भग्नाः सत्यः पुजिता वर्तुलीभूता लता येभ्यः । उद्वृत्ता लता हस्तिशरीरमावेष्टय स्थिताः । अथ तदाकृष्ट्या उत्पाटनेन पुजीकृता इत्यर्थः। एवं प्रहारेण पतिताः परिघाकारा दन्ता येभ्यस्तान् ॥६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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