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________________ ३७२] . सेतुबन्धम् । नवम एवं त्रिदशगजानामरावतादीनां परिघाकारदन्तयुगलेनाङ्कितान् चिह्नितान् कटकतटान् वहन्तम् । कीदृशान् । तुङ्गत्वे पर्याप्तान् । एवं विस्तृतेन विष्कम्भेण दन्तमोर्मध्यभागेन शिष्ट: कथितो मुखस्य विस्तारो यः । तथा च कृतदन्ताघातानां दिग्गजानामतिव्यवहितदन्तद्वयप्रान्तचिह्ननानुमीयते मुखस्यतावान्विस्तार इति । सदभिघातेनाप्यभगुरत्वं सूचितम् ॥५७॥ विमला-यह पर्याप्त ऊंचे कटकतटों को धारण किये है, जिनमें ऐरावतादि सुरगजों के परिघाकार दोनों दातों के अभिघातों के चिह्न बने हुये हैं। ये चिह्न एक-दूसरे से काफी दूरी पर हैं। इसी से यह ज्ञात हो रहा है कि सुरगजों के मुखों का विस्तार कितना है ॥५७।। पारिजातसंबन्धमाहतिप्रसगआण वहन्तं हत्थुम्हाहअकिलन्तपल्लवराए। कडपरिघोलणकविले चिरवूढविमुक्कपारिश्राविडवे ॥५॥ [ त्रिदशगजानां वहन्तं हस्तोष्माहतक्लाम्यत्पल्लवरागान् । कटकपरिघूर्णनकपिलांश्चिरव्यूढविमुक्तपारिजातकविटपान् ॥] एवं चिरं व्याप्य व्यूढानुपचितानथ विमुक्तान्मिथः प्रविभक्तान् पारिजातविट. पान् वहन्तम् । कीदृशान् । त्रिदशगजानां कटकपरिघूर्णनेन गण्डयोः कण्डूयनेन कपिलान् । त्वगपगमात् । एवं हस्तस्य शुण्डाया ऊष्मणा निःश्वासगमनोत्थेन भाहत मत एव क्लाम्यन् प्राप्तरूपान्तरः पल्लवानां रागो लौहित्यं येषु तान् । 'विटपः पल्लवे स्विङ्गे विस्तारे स्तम्बशाखयोः' इति [वि ] श्वः ।।५८।। विमला-वह ( सुवेल ) पारिजात वृक्षों को धारण किये हुये है। ऐरावतादि सुरगजों के गण्ड-स्थल-निघर्षण से ( वल्कल दूर हो जाने के कारण) उनके प्रकाण्ड ( तना ) भूरे रंग के हो गये हैं। उनके पल्लव की लाली ( सुरगजों की ) सूड़ों की ( निःश्वासजन्य ) ऊष्मा से आहत होकर क्षीण हो गयी है। ये पारिजात वृक्ष चिरकाल से बढ़ते-बढ़ते परस्पर संसक्त हो गये थे, किन्तु ( सुरगजों के द्वारा रौंद उठने से ) अब एक-दूसरे से विभक्त एवं विघटित हो गये हैं ॥५॥ पासाअअं वहन्तं मणिकडअमऊहधवलिश्रमिअच्छाअम् । पुट्ठोवइअमहोज्झरजलघाउम्वत्तमण्डलं व मिअङ्कम् ॥५६।। [ पार्वागतं वहन्तं मणिकटकमयूखधवलितमृगच्छायम् । पृष्ठावपतितमहानिर्झरजलघातोवृत्तमण्डलमिव मृगाङ्कम् ॥] __ एवं पार्बेन मेखलया आगतं मृगाकं वहन्तम् । कीदृशम् । मणिमयस्य कटकस्य मयूखेन धवलिता मृगस्य कलङ्करूपस्य छाया कन्तिर्यत्र तम् । हीरकादिकान्तिसंप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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