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________________ २४८ ] सेतुबन्धम् [ सप्तम रविरथमार्गो येनेति तुङ्गिमाधिक्यं चोक्तम् । 'पवित्थो' इति पाठे प्रविष्ट इत्यर्थः ।।८।। विमला-सकल भूमण्डल के तुल्य विकट तथा शिखर-सहस्र से सूर्य के रथमार्ग को भी अवरुद्ध कर देनेवाला ऊँचा पर्वत तिमिगिल के मुख में तृण के समान अदृष्ट हो गया ॥८॥ अथ रत्नानामुच्छलनमाहपवनसिहरुच्छित्तं धावइ जं जं जलं गहङ्गणहुत्तम् । तं तं रमणेहिं समं वीसइ णक्खत्तमण्डलं व पडन्तम् ।।६।। [पर्वतशिखरोत्क्षिप्त धावति यद्यज्जलं नभोङ्गणाभिमुखम् ।। तत्तद्रत्नैः समं दृश्यते नक्षत्रमण्डलमिव पतत् ॥] पर्वतशिखरेणाभिहत्या उत्क्षिप्तं यद्यज्जलं नभोङ्गणाभिमुखं सद्धावति । नभो. ङ्गणं व्याप्नोतीत्यर्थः। तत्तज्जलं मूलादुच्छलित रत्नैः समं पतद दृश्यते। रत्नानां जलबिन्दूनां च नक्षत्रतुल्याकारत्वान्नक्षत्रमण्डलमिवेत्युपमा । यथा नक्षत्रमण्डलं पततीत्यर्थः । तत्तदेव नक्षत्रमण्डलमित्युत्प्रेक्षा वा । एतेन समुद्रमूलक्षोभ उक्तः ॥६॥ विमला-समुद्र में डाले गये पर्वतशिखरों के अभिघात से रत्नों के सहित समुद्र का जो-जो जल आकाश में ऊपर उछल कर व्याप्त हो गया, वही-वही रत्नों के सहित नीचे गिरता हुआ ऐसा ज्ञात हुआ कि मानों नक्षत्रमण्डल ही गिर रहा था । अथ शैलानां पतनप्रकारमाहवाणरवेनाइद्धा पिहलवलन्तणिप्रओझरपरिक्खित्ता। अप्पत्त च्चिअ उहि भमन्ति प्रावत्तमण्डलेसु व सेला ॥१०॥ [ वानरवेगाविद्धाः पृथुलवलमाननिजनिर्झरपरिक्षिप्ताः । अप्राप्ता एवोदधिं भ्रमन्त्यावर्तमण्डलेष्विव शैलाः ॥] वानरैर्वेगेनाविद्धाः प्रेरिता: शैला उदधिमप्राप्ता एवावर्तमण्डलेष्वेव भ्रमन्ति । तथा च प्रेरणाविशेषवशाद गुरुद्रव्यस्वाभाव्येन च भ्रमन्तः सन्त: पतन्तीत्याशयः । तदाह-कीदृशाः। पृथुलैवलमानैर्वक्रीभूत निजनिर्झरैः परिक्षिप्ता वेष्टिताः । अत एव गिरिभ्रमणवशाच्चतुर्दिशं भ्रमित्वा पतत्सु निर्झरजलेष्वावर्तत्वमुत्प्रेक्षितम् ॥१०॥ विमला-वानरों ने इतने वेग से घुमाकर पर्वतों को समुद्र की ओर फेंका कि उनके घूमने से उनके निर्झर चक्कर काटने लगे और उनसे वेष्टित वे पर्वत मानों समुद्र तक विना पहुँचे ही भंवरों के मध्य घूम रहे थे ।।१०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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