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________________ सेतुबन्धम् [प्रथम मार्ग न पाने के कारण ) उसका जीव कण्ठ के मार्ग से बड़ी कठिनाई के साथ निकला। विमर्श-हिरण्यकशिपु के वध की कथा श्रीमद्भागवतपुराण के सप्तम स्कन्ध, अध्याय ८ में तथा अरिष्टासुर के वध की कथा श्रीमद्भागवतपुराण के दशमस्कन्ध, अध्याय ३६ में विस्तार से पठनीय है ॥३॥ मधुमथनस्य रामावतारे सीतां प्रत्यनुरागातिशयवर्णनोपयोगित्वेन कृष्णावतारेऽपि सत्यभामा प्रत्यनुरागप्रकर्षमाह प्रोग्राहिममहिवेढो जेण परूढगुण मूललद्धत्थामो। उम्मूलन्तेण दुमं पारोहो व्व खुडिनो महेन्दस्स जसो।।४।। (प्राइकुलप्रम् ) [अवगाहितमहीवेष्टं येन प्ररूढगुणमूललब्धस्थाम । उन्मूलयता द्र मं प्ररोह इव खण्डितं महेन्द्रस्य यशः ॥] ( आदिकुलकम् ) येन कृष्णरूपिणा द्रुमं पारिजातमुन्मूलयतोत्पाटयता महेन्द्रस्य यशः खण्डितम् । कृष्णकृत्या पारिजातस्य मर्त्यलोकागमनेन महेन्द्रस्यैवायमिति प्रकर्षां गतो युद्धे च पराजयो वृत्त इति भावः । यशः कीदृशम् । अवगाहितं व्याप्तं महीवेष्टं येन तत्तथा। एवं प्ररूढा उपचिता ये गुणा दानशौर्यादयस्त एव मूलं कारणं तेन लब्धं स्थाम स्थैयं येन तत् । यशसो दानादिमूलकत्वात् । कीदृगिव । प्ररोह इव । प्ररोहः शिफा । तथा च पारिजातस्य महेन्द्रयश एव प्ररोह इति भावः । अन्येनापि द्रुमोत्पाटने प्ररोहः खण्डयते । प्ररोहोऽपि कीदक । अवगाहितमहीवेष्टः। भूमिनिष्ठत्वात् । एवं प्ररूढ़ा ये गुणाः प्ररोहतन्तवस्तैः ( मूले ) लब्धं स्थाम येन तत्तथा। वस्तुतस्तु यथा द्रुममुत्पाटयता कृष्णेन प्ररोहः खण्डितस्तथा महेन्द्रयशोऽपि खण्डितमित्यन्यत्समानमिति सहोपमा। चतुःस्कन्धकीयमादिकुलकरूपा। तदुक्तम्-'कुलक बहुभिः श्लोकैः साकाङ्क्षरेकवाक्यता। द्वाभ्यां तु युग्मकं नाम तुल्यार्थाभ्यां तु चुम्बकम् ।।' इति ॥४॥ विमला-जिस श्रीकृष्णरूपी मधुमथन ने पारिजात द्रुम को उखाड़ते समय जिस प्रकार उसके अत्यन्त बढ़े हुये ( गुण ) तन्तुओं से मूल में स्थिरता प्राप्त भूमिनिष्ठ प्ररोह (शिफा, जड़ ) को उखाड़ दिया, उसी प्रकार उसी के साथ इन्द्र के भूमिव्यापक एवम् उपचित गुणों (दान-शौर्यादि) के कारण स्थैर्यशाली यश का भी उत्पाटन कर दिया। उक्त स्कन्धकचतुष्टय की 'आदिकुलक' संज्ञा है। 'कुलकं बहुभिः श्लोक साकाङ्क्षरेकवाक्यता' ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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