SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० ] श्री धन्यकुमार चरित्र सारे संसारके हित करनेवाले अर्हत, अनन्त सिद्ध पंचाचारकें पालनेवाले आचार्य, अपने शिष्यलोगोंको पढ़ानेवाले उपाध्याय और स्वर्ग अथवा मोक्षके लिये उपाय करनेवाले तथा कठिन२ तपश्चरण करनेवाले साधू लोग मुझे मोक्षका कारण मंगल प्रदान करें मैं उनकी स्तुति वंदना करता हूँ। इस चरित्रके सब श्लोक मिलाकर साडे आठसौ होते हैं । इति श्री सकलकोति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्रमें धन्यकुमारका सर्वार्थसिद्धि में गमन वर्णन नाम ___ सातवां अधिकार समाप्त हुआ ॥७॥ ___ अनुवादका परिचय श्री वैश्यवंश-अवतंस ! जिनेन्द्रभक्त ! शान्त-स्वभाव ! सब दोष कलंक मुक्त ! हीरादिचन्द्र शुभ नाम विराजमान् । हे पूज्यपाद ! तुव पाद करों प्रणाम ॥३॥ डा तात ! पाप विधिका नहिं है ठिकाना । है जो आपके अब सुदर्शनका न होना ।। हा ! मन्दभाग्य मुझको दुःख में डुबोके । मा* भी हुई सुपथ गामिनि आप ही के ॥२।। आधार तात ! नहिं है अब कोई मेरा । हा ! और संसृति-निवास बची घनेरा ।। कैसे दु:खी उदय जीवन पूर्ण होगा ? फैल कर्मके 'उदय' को किसने न भोगा ॥३॥ जिनेन्द्रसे विनय हे देव ! देख जगमें अवलम्ब हीन । आलम्ब देकर करो अब कर्महीन ॥ जो दुःख-नीर-निधिमें अब छोड़ दोगे । "तो दासका कठिन शाप विभो! गहोगे ? ॥४॥ अनुवादक-उदयलाल कासलीबाल (बड़नगर) मा शब्द माता और लक्ष्मी का वाचक है । हमारी माताका नाम भी लक्ष्मी था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy