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________________ भूमिका... और बन्धुदेव प्रवजित हो गये । उन्होंने हरिषेण युवराज को राज्य दे दिया। कुछ समय बीता । विषेण ने सेन के घातक भेजे । उन्होंने छल नहीं पाया । एक बार राजपुर के स्वामी के पास से एक राजपुरुष आया। उसने कहा-हे राजन् ! राजपुर के स्वामी ने निवेदन किया है कि मेरे एक शान्तिमती नामक कन्या है । उसे आप जिस कुमार को अधिक मानते हों, उसे देने की मैं अनुमति देता हूँ । राजा ने कहा-प्रथम कुमार सेन की यह गृहिणी हो । इस घटना से विषेण दुःखी हुआ। कुमार सेन और शान्तिमती का विवाह हुआ। कुछ दिनों के बाद एक बार वसन्त मास आया। कुमारसेन क्रीड़ा के लिए अमरनन्दन नामक उद्यान में गया । भवन के नीचे गये हए कुमार विषेण ने उसे देखा । उसे देखकर पूर्वकर्म की प्रबलता से विषेण को डाह उत्पन्न हुई उसने कुमारसेन को मारने वालों को प्रयुक्त किया । कुमार अपनी वीरता के कारण उन आदमियों के प्रहार से बच गया। राजा को ज्ञात हुआ कि इन लोगों को विषेण ने प्रेरित किया है अतः वह उस पर कुपित हुआ। उसने विषेणकुमार को राज्य से निकालने का आदेश दिया। किन्तु कुमार सेन के आग्रह से उसे छोड़ दिया। ___ एक बार कौमुदी महोत्सव आने पर एक मतवाले हाथी को कुमार सेन ने वश में किया । यह सुनकर विषेण अत्यधिक ःखी हआ। उसे कषायों ने जकड़ लिया। एक बार शान्तिमती के साथ जब कुमार उद्यान में था तब उसे मारने के लिए कुमार विषेण कुछ व्यक्तियों के साथ गया। विश्वस्त होकर तलवार खीची। उसे शान्तिमती ने देख लिया। अनन्तर कुमारसेन ने विषेण को घायल कर उसके हाथ से छरी छीन ली। कमार सेन ने सोचा कि राज्य को लक्ष्य कर कुमार किसी के द्वारा ठगा गया है. अतः विचारविमर्श कर शान्तिमती और कुमार सेन किसी को बिना बतलाये ही राज्य से बाहर निकल गये। दोनों चम्पावास नामक सन्निवेश में पहुंचे। वहां पर ताम्रलिप्ती को जाते हुए राजपुर निवासी सानुदेव नामक सार्थवाहपुत्र ने उसे देख लिया और पहिचान लिया। व्यापारियों के साथ कुमार भी शान्तिमती को लेकर चल पड़ा । आगे चलकर दन्तवलभिका नामक एक बड़ा वन मिला। जब मजदूर माल चढ़ाने के लिए गये, सुभट आवश्यक कार्य करने लगे तब अनायास ही बाणों की वर्षा करती हुई भीलों की सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। शबर सेना को कुमार ने पराजित कर दिया। भिल्ल राजकुमार का सेवक बन गया। इसी बीच ज्ञात हुआ कि शान्तिमती दिखाई नहीं दे रही है । भिल्लराज अन्य शबरों के साथ उसे ढूढ़ने लगा। शान्तिमती किसी प्रकार तापसियों के आश्रम में पहुंच गयी थी। एक बार ठक्कुरों ने शबरों पर आक्रमण किया । कुमार और पल्लीपति को ठक्कुरों ने पकड़ लिया । ठक्कुरों के प्रधान समरकेतु ने कुमार से प्रभावित होकर राजपुत्री शान्तिमती की खोज के लिए आदमी भेजे तथा सानुदेव को टोली सहित विदा कर दिया । सोमसूर नामक व्यक्ति ने सुझाव दिया कि नन्दनवन में 'प्रियमेलक' नाम का वृक्ष है । उसके नीचे जाने पर प्रियतमा के साथ कुमार का मिलन होगा। कुमार पल्लीपति की आज्ञा से वहाँ जाने को प्रवृत्त हुआ। प्रियमेलक वृक्ष के पास तपोवन में शान्तिमती की प्राप्ति हुई। शान्तिमती के साथ विषयसुख का अनुभव करते हुए कुमार के कुछ दिन बीत गये । एक बार कर्मों के परिणाम की विचित्रता तथा संसार की असारता से महाराज समरकेतु के पास यम के समान सद्याघाती नामक बीमारी आ गयी। मानो आँतें उखड़ गयी हों, इस प्रकार शूल उठा । कुमार ने आरोग्यमणिरत्न के प्रभाव से राजा की बीमारी दूर कर दी। एक बार कहीं से यह वृत्तान्त जानकर प्रधानमन्त्री का पुत्र अमरगुरु आया। उसने महाराज की प्रव्रज्या, विष्णकुमार को राज्य देना तथा विषेण के राज्य से प्रजा का असन्तुष्ट होना, इत्यादि बातों की जानकारी कुमार को दी। कुछ दिन बीतने के बाद कुमार ने विषेण के राज्य पर ध्यान दिया। अपने परिजनों के साथ समरसेन के यहाँ रहते हुए उसका कुछ समय बीत गया। अनन्तर शुभयोग में शान्तिमती के .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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