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________________ तइमो भयो १७१ उध्वट्टिऊण एत्थेव विजए सिरिमईए सन्निवेसम्मि सालिभद्दस्स गाहावइस्स नंदिणीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबंवन्नो त्ति । जाओ य कालक्कमेण । पइट्ठावियं ते नाम बालसुंदरो त्ति । पत्तो जोवणं । एत्थंतरम्भि सोलदेवाणगारसमीवे पत्तो तए अपत्तपुव्वो जिणवरपणीओ धम्मो। परिपालियं साववत्तणं । कओ य जहाविहि' देहच्चाओ। उववन्नो तयाभिहाणे देवलोए किंचूणतेरससागरोवमाऊ वेमाणिओ ति । तत्थ परि जिऊण दिव्वभोए अहाउयपरिक्खएण चुओ समाणो एत्थेव विजए हथिणाउरे नयरे सुहत्थिस्स नगरसेट्टिस्स कंतिमईए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्नो सि, इयरो वि तओ नरगाओ उन्वट्टिऊण तत्थेव नयरे तुज्झ चेव पिउणो सोमिलाभिहाणाए घरदासीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए त्ति । जाया कालक्कमेण । पइट्ठावियाइं नामाइं-तुझ समुदत्तो, इयरस्स मंगलगो ति । पत्ता य तुन्भे अहाकमेणेव कुमारभावं । एत्यंतरम्मि पवन्नो तए अणगदेवगणिसमोवे जिणदेसिओ धम्मो । कया देसविरई। परिणीया य लच्छिनिलयवासिणो सावयस्स अचलसत्थवाहस्स धूया जिणमई । अन्नया य मंगलदुइओ जिणमईनिमित्तमेव पयट्टो लच्छिविलयं । आगओ य कइवय यथाऽऽयुष्के नारकात उदवत्त्य अत्रैव विजये श्रीमतौ सन्निवेशे शालिभद्रस्य गहपतेनन्दिन्यां भार्यायां कुक्षौ पुत्रतया उपपन्न इति । जातश्च कालक्रमेण । प्रतिष्ठापितं तव नाम बालसुन्दर इति । प्राप्तो यौवनम् । अत्रान्तरे शीलदेवाऽनगारसमीपे प्राप्तस्त्वया अप्राप्तपूर्वो जिनवरप्रणीतो धर्मः। परिपालितं श्रावकत्वम् । कृतश्च यथाविधि देहत्यागः । उपपन्नो लान्तकाऽभिधाने देवलोके किञ्चिदूनत्रयोदशसागरोपमायुर्वैमानिक इति । तत्र परिभुज्य दिव्यभोगान् यथाऽऽयुष्कपरिक्षयेण च्युतः सन् अव विजये हस्तिनापुरे नगरे सुहस्तिनो नगरष्ठिनः कान्तिमत्या भार्यायाः कुक्षौ पूत्रतया उपपन्नोऽनि, इतरोऽपि ततो नरकाद् उद्वत्त्य तत्रैव नगरे तत्र चैव पितुः सोमिलाऽभिधानाया गहदास्याः कुक्षौ पुत्रतया इति । जातौ कालक्रमेण । प्रतिष्ठापिते नाम्नी-तव समुद्रदत्तः इतरस्य मङ्गलक इति । प्राप्तो च युवां यथाक्रमेण कुमारभावम् । अत्रान्तरे प्रपन्नस्त्वया अनङ्गदेवगणिसमीपे जिनदेशितो धर्मः । कृता देशविरतिः । परिणीता च लक्ष्मीनिलयवासिनः श्रावकस्य अचलसार्थवाहस्य दुहिता जिनमतिः । अन्यदा च मङ्गलद्वितीयो जिनमतिनिमित्तमेव प्रवृत्तो लक्ष्मीनिल भद्र गृहपति की नन्दिनी नामक पत्नी के गर्भ में पुत्र • रूप में आये । कालक्रम से तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारा नाम बालसुन्दर रखा गया। (तुम) यौवनावस्था को प्राप्त हुए । इसी बीच शीलदेव नामक मुनि के पास तुमने जिनेन्द्रदेव द्वारा प्रणीत अपूर्व धर्म को पाया। श्रावकधर्म का तुमने पालन किया और विधिपूर्वक शरीर छोड़ा। (तुम) लान्तक नामक स्वर्ग में तेरह सागर से कुछ कम आयु वाले वैमानिक देव हुए । वहाँ दिव्य भोगों को भोगकर आयु का क्षयकर इसी देश के हस्तिनापुर नगर में सुहस्ती नामक नगरसेठ की कान्तिमती नामक स्त्री के गर्भ में पुत्र के रूप में आये । दूसरा भी उस नरक से निकलकर उसी नगर में तुम्हारे ही पिता की सौमिला नामक गृहदासी के गर्भ में पुत्र के रूप में आया । कालक्रम से दोनों का जन्म हुआ। दोनों के नाम रखे गये-तुम्हारा समुद्रदत्त और दूसरे का मंगलक । तुम दोनों क्रमशः कुमारावस्था को प्राप्त हुए। इसी बीच तुमने अनगदेव गणि के समीप जिनप्रणीत धर्म पाया । देशविरति की और लक्ष्मीनिलय के वासी अचल नामक व्यापारी की पुत्री जिनमति से विवाह किया। एक बार मंगलक के साथ जिनमति के निमित्त लक्ष्मीनिलय पर आये। कुछ दूर १. जहाविहिणा-खा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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