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________________ [समराइच्चकहा नयणो जहट्टियधम्मदेसणालद्धिसंपन्नों' त्ति । तओ तन्नयरसामी अरिमणो नाम राया, अन्नो य न रजणवओ निग्गओ तस्स दंसणवडियाए', संपत्तो से पायमूलं । वंदिओ भयवं नरवइणा नयरजवएण य। अहिणंदिओ य धम्मलाहेण भयवया नरवई नयरजणवओ य। उवविट्ठो य गुरुवयणबहुमाणमहग्यो अहाफासुए धरणिव? राया नयरजणवओ य । पुच्छिओ य भयवं अहाविहारं राइणा । अणुसासिओ य तेणं। राइणा भणियं-भयवं! संपन्नं ते भयभविस्सवत्तमाणस्थगाहगं ओहिनाणं । ता करेहि मे अनुग्गहं । आइक्ख निययचरियं, कया कहं वा भयवया संपत्तं सासयसिवसोक्खपायवेक्कबीयं सम्मत्तं, देसविरई वा, इह अन्नभवेसु वा सामण्णं' ति। भयवया भणियं, सुण. अत्थि इहेव विजए चंपावासं नाम नयरं । तत्थाईयसमयम्मि सुधणू नाम गाहावई होत्था, तस्स घरिणी धणसिरी नाम, ताण य सोमाभिहाणा अहं सुया आसि । संपत्तजोव्बणा य दिन्ना तन्नयरनिवासिणो नंदसत्थवाहपुत्तस्स रुदेवस्स । कओ य ण विवाहो । जहाणुरुवं विसयसुहमणुज्ञाननयनो यथास्थितधर्मदेशनालब्धिसम्पन्न' इति । ततस्तन्नगरस्वामी अरिमर्दनो नाम राज, अन्यश्च नगरजनपदो निर्गतः तस्य दर्शनवृत्तितया, सम्प्राप्तस्तस्य पादमलम् । वन्दितो भगवान् नरपतिना नगरजनपदेन च। अभिनन्दितश्च धर्मलाभेन भगवता नरपतिः, नगरजनपदश्च । उपविष्टश्च गुरुवचनबहुमानमहा? यथाप्रासुके धरणीपृष्ठे राजा नगरजनपदश्च । पृष्टश्च भगवान् यथाविहारं राज्ञा । अनुशिष्टस्तेन । राज्ञा भणितम्-'भगवन् ! सम्पन्नं ते भूतभविष्यद्वर्तमानार्थग्राहकमवधिज्ञानम् । ततः कुरु मे अनुग्रहम् । आचक्ष्व निजकचरितम् , कदा कथं वा भगवता सम्प्राप्तं शाश्वतशिवसौख्यपादपैकबोजं सम्यक्त्वम्, देशविरतिर्वा, इहान्यभवेषु वा धामण्यम् -इति? भगवता भणितम् । शृणु अस्ति इहैव विजये चम्पावासं नाम नगरम् । तत्रातीतसमये सुधन्वा नाम गाथापतिरासीत्, तस्य गहिणी धनश्री म, तयोश्च सोमाभिधानाऽहं सुताऽऽसम् । सम्प्राप्तयोवना च दत्ता तन्नगरनिवासिने नन्दसार्थवाहपुत्राय रुद्रदेवाय । कृतश्च तेन विवाहः । यथाऽनुरूपं विषयसुखमनुभवाव को नष्ट कर अवधिज्ञान रूपी नेत्र से युक्त हो गये हैं और यथास्थित धर्मदेशना-लब्धि से सम्पन्न हैं।' तब उस नगर का स्वामी अरिमर्दन नाम का राजा और दूसरे नगरवासी उनके दर्शन के लिए निकले और उनके पादमूल में गये। भगवान की राजा और नगरनिवासी जनों ने वन्दना की। धर्मलाभ देकर भगवान् ने राज और नगर निवासियों का अभिनन्दन किया। गुरु के बहुमूल्य वचनों का आदर करते हुए जीवजन्तु रहित पृथ्वी पर राजा और नगरनिवासी बैठ गये । राजा ने पूछा, "भगवन् ! कैसे आगमन हुआ है ?" भगवान् ने उन्हें शिक्षा दी। राजा ने कहा, "भगवन् ! आपको भूत, भविष्यत् और वर्तमान पदार्थ को ग्रहण करने वाला अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है अतः मेरे ऊपर अनुग्रह कीजिए । अपना चरित्र कहिए । भगवान् ने कब और कैसे शाश्वत मोक्ष रूपी सुख का एक मात्र बीज सम्यग्दर्शन, देशविरति अथवा इस भव और अन्य भवों में मुनि-अवस्था प्राप्त की ?" भगवान ने कहा, "सुनो ___ इसी देश में चम्पावास नामक नगर है । उसमें प्राचीन काल में सुधन्वा नामक गृहस्थ था, उसकी स्त्री का नाम धनश्री था। उन दोनों की (मैं) सोमा नाम की पुत्री थी । यौवनावस्था प्राप्त होने पर उसी नगर के निवासी नन्द नाम के सार्थवाह (व्यापारी) के पुत्र रुद्रदेव को दी गयी । उसने विवाह किया। यथानुरूप दोनों ने १. बढियाए-क., च.। २. वंदियो -च. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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