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________________ वीमो भयो ] वल्हीय-कम्बोय-वज्जराइआसकलियाई घोडयवंद्राई, भद्द-मंदवंसप्पमुहा य गय विसेसा ॥ एत्थंतरम्मि जलणे घय-महु-लायाहि अह हुणिज्जंते । पारद्धं च बहु- वरं भमिउं तो मंडलाई तु ॥ १७० ॥ पढमम्मि बहूपिउणा दिन्नं हिट्ठण मंडलवर म्मि । भाराणं सयसहस्सं अघडियरूवं सुवणस्स ॥१७१ । वीयम्मि हार-कुंडल-कडिसुत्तयतु डियसारमाहरणं । तइयम्मि थाल - कच्चोलमाइयं रुप्पभंडं तु ॥ १७२ ॥ दिन्नं च चउत्थम्मि बहूए परिओसपयडपुलएणं । पिउणा सुट्ठ' महग्घं चेलं नाणापयारं ति ॥१७३॥ पुरिसदक्षेण वियरन्ना सविहवाणुरूवो अच्चंतपसायमहग्घो कओ जणाणमुक्यारो, दिन्नं च विमलमणि - रयण-मुत्ताहलसणाहं वहुयाए अणग्धे यमाहरणं । तुरुष्क वाल्हीक काम्बोज - वज्जराद्यश्वकलितानि घोटकवृन्दानि भद्र-मन्दवंशप्रमुखाश्च गजविशेषाः। अत्रान्तरे ज्वलने घृत-मधु-लाजाभिरथ हवनोये । प्रारब्धं च वधू-वरं भ्रमितुं ततो मण्डलानि तु ॥ १७० ॥ १०१ प्रथमे वधूपित्रा दत्तं हृष्टेन मण्डलवरे । भाराणां शतसहस्रमघटितरूपं सुवर्णस्य ॥ १७१ ॥ द्वितीये हार-कुण्डल- कटिसूत्रक त्रुटितसारमाभरणम् । तृतीये स्थाल - कच्चालादिकं रौप्यभाण्डं तु ॥ १७२॥ दत्तं च चतुर्थे वध्वाः परितोष प्रकटपुलकेन । पित्रा सुष्ठु महार्घं चेलं नानाप्रकारमिति ॥ १७३॥ पुरुषदत्तेनापि च राज्ञा स्वविभवानुरूपोऽत्यन्तप्रसाद महार्घः कृतो जनानामुपचारः, दत्तं च विमलमणि रत्न- मुक्ताफलसनाथं ववै अनर्घ्यमाभरणम् ॥ घोड़ों का समूह तथा भद्र, मग्द आदि विशिष्ट वंशों के हाथी भेंट किये गये । इसी बीच, जिसमें घी, मधु, लाई आदि से आहुतियाँ दी जा रही थीं, उस अग्नि के चारों ओर वर के चक्राकार फेरे प्रारम्भ हुए। पहले फेरे में प्रसन्न होकर वधू के पिता ने एक लाख भार वाली सोने की वस्तुएँ दीं। दूसरे फेरे में हार, कुण्डल, करधनी, त्रुटित (एक प्रकार का पात्र) आदि आभूषण दिये। तीसरे फेरे में चांदी की थाली, कच्चोल (प्याले) आदि बर्तन दिये । चौथे फेरे में सन्तोष से प्रकट रोमांच वाले वधू के पिता ने बड़े कीमती नाना प्रकार के वस्त्र दिये ।। १७०-१७३॥ Jain Education International पुरुषदत्त राजा ने भी अपने वैभव के अनुरूप अत्यन्त प्रसन्न होकर बहुमूल्य वस्तुओं से लोगों का सत्कार किया और वधू को स्वच्छ मणि, रत्न मुक्ताफलादि से युक्त बहुमूल्य आभूषण दिये। १. तुटुणख । २. सुद्ध0 - ख. । ३. पस्सय महामहग्धं - क. अचंतमहग्घो ख. । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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