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________________ साहारणकविरइया [१.१८तो तीए हियय-साहारणत्थु मई जंपिउ एरिसु अलिय-वत्थु । १० सामिणि तुहुं होहि सधीर-चित्त उवलद्ध सयल मई लासु वत्त । तसु कारणि सामिणि सुललिय-गाििण विन्नवेसु एक्कंतरण । एरिसु निमुणेविणु महु तूसेविणु किउ पसाउ कडि मुत्तएण ॥१७॥ [१८] एत्थंतरि आगय जणणि तासु पभणिय विलासवइ साहिलासु । उठेहि पुत्ति सारेहि वीण महाराएं पेसिय तुज्झ आण । तई तासु पुरउ बहुविह-पओउ कायव्वु अज्जु वीणा-विणोउ । तो उट्ठिवि गुरु-लज्जालुयाए पणमेवि जणणि जंपिउ इमाए । ५ सदावहि वीणायरिणि देवि सहस त्ति चलिय एरिसु भणेवि । अहमवि य विसज्जिउ घरह आय चिंतति य मणि बहुविह उवाय । तो सविसेसेण निरूवियस्स उवलद्ध पउत्ति न का वि तस्स । ता किं अक्खिस्समि निव-सुयाए अद्धासिय चिंत-पिसाइयाए । एयं चिय दारुणु दुक्खु मज्झु नीसेसु वि साहिउ सुहय तुज्झु । १० मई जंपिउ चिंत परिच्चएहि में इह विसाउ सुंदरि करेहि । तुह सामिणि-वल्लहु होइ न दुल्लहु सो जुवाणु जाणामि हउँ । तेण य तुह दइयहे नरवइ-दुहियहे निच्छउ दुहच्छेउ विहउँ ॥१८॥ [१९] पुच्छइ अणंगसुंदरि कहेहि को सो जुवाणु किह तुहु मुणेहि । मई साहिउ मज्झु अभिन्न-चित्तु सामिउ वयंसु अह भाइ-मिस्तु । सो सुंदरि सेयवियाहिवस्स नंदणु जसवम्म-नराहिवस्स । नीसेस-कलालउ भुवण-सारु नामेण पसिद्ध सणंकुमारु । कीला-निमित्तु वण-पत्थियस्स सा बउल-माल निक्खित्त तस्स । तेण वि बहुमन्निय आयरेण इय सुणिवि भणइ सा अलमिमेण। जो जाणिवि सामिणि-हियय-भाउ अच्छइ य निरुज्जमु विगय-राउ । मई जंपिउ नस्थि निरुज्जमो वि परिचिंतइ विविह उवाय सो वि । [१५] १०. पु० सुधीरचित्त [१८] २. ला० महाराई ४. ला० उठेवि ६. ला० अहमवि अविसज्जिय, चितेति य मणे १२. पु० दइयहि नरवइदुहियहि, दुक्खच्छेउ [१९] १. पु० तुहुँ २. पु० मज्झ. ५. ला० बहि पत्थि० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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