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________________ प्रस्तावना समराइच्च-कहा (१) विद्धो य तीए दिठ्ठिपाय-च्छलेण मयण-सर-धोरणीहिं । पृ० ३७० (२) तत्थ पुण मुच्छिओ विय मूढो विय मत्तो विय मओ विय भीओ विय गह-गहिओ विय बेवमाण-हियओ......... पृ० ३७१ (३) विरला जाणन्ति गुणा, विरला जंपन्ति ललिय-कव्वाइं । सामण्ण-धणा विरला, परदुक्खे दुक्खिया विरला ॥ पृ० ३७२ विलासवई-कहा दिट्ठि-च्छलेण विद्धो य तीए तुहुं मित्त मयण-सर-धोरणीए । १ ११.५ तहिं नावइ मत्तउ पर-आयत्तउ नाइ मूदु नं मुच्छियउ । नावइ गह-गयिउ अहवइ भीयउ वेवमाण-तणु अच्छियउ।। १.१२ विरल च्चिय जाणहि गुणह भेउ । विरल च्चिय विरयहिं ललिय-कव्व, विरल च्चिय जण सामण्ण-दव्व । विरल च्चिय पर-कज्जई कुणंति, पर-दुक्खे दुक्खिय विरल हुंति । (४) तओ एयं सोऊण मोहदोसेणाई सव्व-सोक्खाणं पिव गओ पारं, पीईए वि य पाविओ पीइं, धिईए व अवलंबिओ धिई, ऊसवेण वि य कओ मे ऊसवो । दिन्नं वसुभूइणो कडय-जुयलं । पृ०.३७७ (५) जओ सोम्मा नाम सत्तमी एसा छिक्का आरोग्ग-फला अणन्तरा अपुव्व-अत्थ-लाभोत्तरा य । तहा य भणियमिणमिसीहिंपतिसेहमजत्तं वा हाणिं वुड्ढेि खयं असिद्धिं वा । आरोग्गमत्थलाभं छीयमि पयाहिण-दिसासु ॥ पृ ३९२-९३ (६) एवं गच्छमाणाण तेरसमे दियहे उन्नओ अम्हाणमुवरि कालो व्व कालमेहो, जीवियासा विय फुरिया एरिसु निसुणेवि सणकुमारु, सव्वाहं वि सोक्खह गयउ पारु । नं पीइहिं पडियउ, नं घिइहिं चडियउ, नाइ महूसउ पावियउ । वसुभूइहि तुट्ठउ, पुणु सुविसिट्ठउ कडय-जुयलु तसु दावियउ ।। १.२० सत्तमिय छिक्क एह सोम नाम, आरोग्ग महा-फल होइ ताम । होसइ आरोग्ग-महाफला य, तह चेव अत्थ-लाभोत्तरा य । इय साहिय छिक्क रिसीहिं जेण, अट्ठसु वि दिसासु पयाहिणेण । पडिसेहु अनिव्वुइ हाणि विद्धि, खउ अंतरु खेमु तहेव रिद्धि । २.१४ इय तहिं जाणवत्ति पवहंतए, तेरसमइ वासरि संपत्तए । सव्वह कालु नाइ उक्कंठिउ , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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