SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८१ ११.१९] विलासवईकहा जिह ऊसर-खेत्तई पुव्व-पलित्तई वण दवु थक्कइ न य दहइ । तिह मिच्छह अणुदइ जं सुहु विदइ तं उवसम-दंसणु लहइ ॥१७॥ __ [१८] तं तिविहु वि होइ निसग्गएण अहवा जिण-आगम-अभिगमेण । उक्कोसिय कम्महं ठिइ खवेवि सायरह कोडि अणिय धरेवि । सुंदर अउव्वकरण-कमेण दढ-कम्म-गंठि भिंदइ खणेण । तयणंतर नं सिव-रुक्ख-बीउ भव-सिद्धिउ पावइ भव्व-जीउ । ५ उप्पज्जइ दंसणु एउ जासु नियमेण कुणइ दोग्गइ-विणासु । जइ तं सम्मत्तु वि न य वमेइ न य पुव-निवद्धाउऊ हवेइ । सम्मत्ते पत्ते उवसमु करेइ संविग्गु मोक्खु पर अहिलसेइ । निविण्णु वसइ दारुण-भवम्मि अणुकंप कुणइ सो दुक्खियेम्मि । मन्नइ नीसंकु जिणोवइछ इय चिंधेहिं तं सम्मत्तु सिठ्ठ। १० परिवज्जिय-कुग्गहु मुद्ध-भाउ सो मन्नइ देवु वि वीयराउ । जसु भुक्ख-पियासइं राग-दोसई खेउ सेउ मलु मोह भउ । भय-मय-जर-जम्मणु चिंता-वंचणु निद्द पमाउ विमोहु गउ ॥१८।। इमेहिं च अट्ठारसेहिं पि मुक्को असेसाण संसार-दुक्खाण चुक्को । अणंगो वि झाणानले जेण दड्ढो न जो सेवए कामिणी काम-थड्ढो। न उद्धलए जो य छारेण अंगं सिरे जडाओ न धारेइ गंगं । न खटुंगमुग्गं कवालाण माला सरीरम्मि नो जस्स नागा कराला । ५ न जो नच्चए गायए नट्ठ-हासो मसाणम्मि भूयाउले नत्थि वासो । न पक्खीसु सीहे बलदे व रूढो न जो मारए चूरए ने य मूढो । न चक्कं धणूं धारए ने य मूलं न खग्गाइयं आउहं दोस-मूलं । न अप्फालए डमरुयं ने य संखं कयंतो व्व संहारए नो असंख । नडो जेंव नो धारए ऽनेय रूवं न माया-पवंचेहि वंचेइ लोयं । [१८] २. पु० कोडे ऊणिय ५. पु० दसण ११. ला. रोग-दोसइं .. भओ । १२. ला० पमाओ वि मोह गओ। [१९] ३. पु० सिरेणं जडाउ न ६. ला० मारए दूरए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy