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________________ साहारणकविरइया ८.१० तो निज्जमाण-सुविलेवणयं हासिज्जमाण-वल्लह-जणय । दिज्जत-कुसुम-माला-थवयं पिज्जंत-विविह-पवरासवयं । सामिय-सम्माण-पसन्न-भडं आलोच्चिय-वर-सन्नाह-पडं । वण्णिज्जमाण-पडिवक्ख-गुणं माणिज्जमाण-दुज्जण-पिसुणं । ५ उब्भिज्जमाण-भड-चिंध-धयं दिज्जत-पडाय-मणोहरयं । लंबिज्जमाण-सिय-चामरयं वज्जत-कणय-किकिणि-सुहयं । विरइज्जमाण-छत्तुज्जलयं संपाडिय-गमण-सुमंगलयं । घोसिज्जमाण-निय-सामि-जयं । निसुणिज्जमाण-पुण्णाह-पयं । पूरिज्जमाण-रायंगणयं धातुत्तावल-परियणयं ।। १० परियड्ढमाण-कलयल-पबलं कुमरस्स विइय सन्नद्ध बलं । चलियाई विमाणई हय-गय-जाणइं विज्जाहर नहि उप्पइय । निय-सेन्नह कुमरें जाणिय-समरें पउम-वूह-रयणा वि किय ॥९॥ [१०] सेणावइ वइरि-गइंद-सीहु ठिउ वूहह अग्गइ चंडसीहु । तह समरसेणु ठिउ वाम-पासि देवोसहु दक्षिण-दिसिहि आसि । सन्नद्ध-बद्ध सहुं निय-बलेण नरवइ मयंगु ठिउ पच्छिमेण । सेन्ने सहुं रक्खिय-खंधारु मज्झं ठिउ पिंगल गंधारु । ५ कुमरो वि वाउवेगाइएहिं ठिउ गयणे सरिसु विज्जाहरेहिं । तो एत्तहे पत्तउ गरुय-मन्नु आसन्न अणंगर इस्स सेन्नु । तो कुमरे पुच्छिउ विमल-मइ पर-बल-निव-नामइं अमियगइ । ते भणियउं सयड वहस्स देव तुंडे ठिउ कंचणदाहु चेव । वाम य दिसाए संठिउ असोउ ठिउ कालजीहु दक्खिणे सलोउ । १० मज्झम्मि विरु उ बहुवल-समे उ पहिहिं अणंगरइ गरुय तेउ । मुत्ताहल-धवलउं किंकिणि-मुहलघु उवरि देव जसु पुंडरिउ । अह सयडह पच्छइ सामिय अच्छइ सो अणंगरइ तुम्ह रिउ ॥१०॥ [९] १. पु०-सुविलेवणई हाहिज्जमाण ५. ला० -चिंधवयं ७. ला० मंडिज्जमाण--छत्तुज्जलयं ८. पु० सामिण्यं १०. पु० परिवड्ढमाण...बिझ्ययं ११. पु० नहे [१०] ३. पु० सहु ४. ला० सेन्नि, पु०सहु...मझे, ला० गिलु ८. ला' भणिउ १२. पु० पच्छए...अच्छए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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