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________________ १०८ साहारणकविरइया [२१] एतहे लय-कम-तालेहिं सज्जिउ भं भं भेरि सद्दु तर्हि सारउ धुम्मुकु धुम्मुकु मद्दल धुम्मइ तोंग थांगि थगि पहु पवज्जइ ५ दों दो दो दों सह मउंदहं गुईंगुई गुईं गुई गुंज रिउजहं । दुलिलिंदि दुलिलिंदि तिलिम सृणिज्जइ डम डम डम डम डमरू गज्जइ । कण कण कणंति तर्हि भाणई छंछोलई करंति कंसालाई ति झल्लरिउ निसानई । तंडिक्कई झणहणहिं मालई । संख-घोसु आऊरइ नहयलु | इय वज्जई वज्जियई असेसई | तुतु तू तुतु तू काहल - कलयलु १० स र ग म प ध नि वीण तह वसई फुट्टउं नं बंभंडु उच्छलियउ तूरारउ । नं रण- दंसण- कज्जे तो दिसि समुहुं दोलिर-धयाई अणुकूल-पवण-परिपेल्लियाई जय-सूयग-सउण-महा-विसेसु विज्जाहर के वि महागए हिं ५ अन्ने वि पुण सीहेहिं वानरेहिं सव्वहं सुहडहं आणंदु जाउ कुमरह जय सहु सुरेहिं घुट्ठु पेच्छंतर महि-मंडल असे सायर - सरि-सोत्तई सर- जलाइ १० परिचत्तउ गमण - परिस्समेण सुगहिरु मंगल-तूरु पवज्जिउ । टिटिंब टि टिटिंब टि हुउ ढकारउ । fafar fa faaरि कि करडिय सुम्मा | झझगिगि झझगि हुडुक्किय छज्जइ । उ देव हक्कार || २१॥ [२२] Jain Education International [७. २२ उब्भिय उन्भड -भड - चिंधयाई । गयणेण विमाणई चल्लिया । चल्लिउ विज्जाहर-बलु असेसु । आरूढ के वि चंचल -हएहि । संछन्तु गयणु जिह सुर-वरे हिं उक्कुट्ठि करहिं तह सीह - नाउ । सुसुगंधहं कुसुमहं वरिसु बुझ्छु नयरावर - पुर- पट्टण-निवेसु । गामई गिरि-गोंडर - गोउलाइ । वेट पहुत्तउ तक्खणेण । [२१] १. पु० सगहिरु ३. पु० किकिरिकि किरि करि ४. ला० तोंग योंगि ६. ला० दुल्लु दि दुल्लुंदि - ७ पु० त्रह त्रह त्रित् झल्ल० ९ पु० आऊरिय १० ला वीण तहिं ... [२२] ६. पु० आनंद ९ पु० सायर-सर-सोत्तइ... गोपुलाई । १०. पु० परिस्सएण, ला० वेयड्ढे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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