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________________ संधि-७ [१] सदाविउ वसुभूइ सो जाव न भासइ । तो गुह-मज्झि निरूवियउ तहिं जाव न दीसइ ॥ तो जाव न दीसइ गुह-मुहम्मि आसंक पडिय कुमरह मणम्मि । अह सो विज्जाहर-बल-समेउ गयणेण पयट्टउ सिग्ध-वेउ । ५ तो सयलु मलय-गिरि हिंडिऊण आढत्तउ तत्थ गवेसिऊण । अह वण-निगुंजि एक्कहिं भमंतु दिट्ठउ वसुभूई सु आसुरुत्तु । सो वि हु विज्जाहर ते निएवि तरु-साह उभय-करयलेहि लेवि । रे रे दुट्ठहो विज्जाहराओ मह दिहिहि गोयरे ठाहो ठाहो । मह पिय-वयंस-गेहिणि हरेवि वल्लहिय विलासवइ त्ति देवि । १० कहिं जाह दिट्ठ एरिसु भणंतु धाविउ कुमार-संमुहु तुरंतु । तो कुमरु विचितइ तं निएवि निच्छउ केण वि अवहरिय देवि । हा अफलु परिस्समु मज्झ जाउ इह विज्जा-साहणु अंतराउ । तो पुच्छिउ वसुभूइ किं वणु अवगाहहि । कहिं कहिं सा देवि मित्तय महुं साहहि ॥१॥ आसन्नु कुमारु निएवि तेण वइरिय-विज्जाहर-संकिरण । साहाए सिग्घु घल्लियउ घाउ वंचियउ कुमारि विफलु जाउ । अवहरिवि साह तो गिहिऊण हत्थेहिं दोहिं संबोहिऊण । एरिसु पुणो वि पणिउ इमेण अलमन्नह मित्त वियप्पिएण । ५ साहेहि ताव कहि कत्थ देवि पुणु पुच्छिउ अत्ताणउ कहेवि । तेण वि सविसेसु पलोइऊण सो कुमरु एहु परियाणिऊण । जंपिउ वयंस निसुणसु तुमम्मि वा-विज्जा-साहण उज्जयम्मि । [१] १. ला जाव २. पु० गुह-पज्झे ६. पु० एकहि ७. पु० करयलहि ८. पु० गोयरो १०. ला० भणंतो १४. ला० महु [२] २. पु० कुमार विफलउ ३. पु. गेण्हिऊग ५. लाо कह, पु० अत्ताण १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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