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________________ २६] लोकविभागः [१.२१८पूर्वापरविदेहान्ते संश्रित्य लवणोदधिम् । देवारण्यानि चत्वारि नद्योस्तटचतुष्टये ।। २१८ विस्तृतिद्विसहस्रं च नवशत्येकविंशतिः । अष्टादश कलाश्चषां वेदिका वेदिकासमाः॥२१९ । २९२१।१६। विदेहानां स्थितो मध्ये कुरुद्वयसमीपगः । नवति च सहस्राणां नव चोद्गत्य मन्दरः ।। २२० । ९९०००। तस्यागाधं सहस्रं च विष्कम्भोऽयुतमत्र तु । नवतिश्च दशान्ये स्युर्योजनकादशांशकाः ॥ २२१ ।१००० । १००९० । । एकत्रिशत्सहस्राणां शतानां नवकं दश । योजनानि परिक्षेपो द्वौ चात्रकादशांशको ॥ २२२ ।३१९१०। । एकत्रिशत्सहस्राणि षट्छतं विशति-द्विकम् । योजनानां त्रिगव्यूति शते द्वादशापि च ॥ २२३ दण्डा हस्तत्रिकं भूयोऽप्यङगुलानि त्रयोदश । भद्रसालपरिक्षेपो विष्कम्भोऽयुतमत्र तु ।। २२४ ।३१६२२ को ३ दं २१२ ह ३ अं १३ । १७००० । ऊध्वं पञ्चशतं गत्वा नन्दनं नामतो' वनम् । तत्पञ्चशतविस्तारं परितो मन्दरं स्थितम् ।। २२५ भरत-ऐरावत १-१, बत्तीस विदेहविजयस्थ ३२, समस्त अढाई द्वीप सम्बन्धी ३४ x ५ = १७० । इनके ऊपर वृषभ नामक देव रहते हैं ।। २१७ ॥ पूर्व और अपर विदेह क्षेत्रोंमें सीता-सीतोदा नदियोंके चार तटोंपर लवणोदधिके आश्रित चार देवारण्य स्थित हैं ।। २१८ ।। इनका विस्तार दो हजार नौ सौ इक्कीस योजन और अठारह कला (२९२११६) प्रमाण है। इनकी वेदिका [भद्रशाल वनकी] वेदिकाके समान (१ योजन ऊंची, २ कोस विस्तृत और १ कोस अवगाहवाली) है ।। २१९ ।। विदेहोंके मध्य में दोनों कुरुक्षेत्रोंके समीपमें निन्यानवै हजार (९९०००) योजन ऊंचा 'मन्दर पर्वत स्थित है ।। २२० ।। उसकी नीव एक हजार (१०००) योजन और विस्तार तिलभागमें] दस हजार नब्बै योजन व एक योजनके ग्यारह भागों में से दस भाग (१००९०६) प्रमाण है ।। २२१ ।। इसकी परिधिका प्रमाण इकतीस हजार नौ सौ दस योजन और एक योजनके ग्यारह भागों में से दो भाग ( ३१९१०.३. यो. ) है ॥२२२॥ भद्रसाल वनमें अर्थात् पृथिवीके ऊपर उपर्युक्त मेरुको परिधि इकतीस हजार छह सौ बाईस योजन,तीन कोस, दो सौ बारह धनुष, तीन हाथ और तेरह अंगुल (३१६२२ पो., ३ को., २१२ धनुष, ३ हाथ, १३ अंगुल) प्रमाण है। यहां मेरुका विस्तार दन हजार योजन मात्र है ।। २२३-२२४ ।। मेरु पर्वतके ऊपर पांच सौ ( ५०० ) योजन जाकर नन्दन वन स्थित है। १ प नन्दनो वामतो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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