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________________ 5 9. 12. 12.] णायकुमारचरिउ भूयह मेलावउ कहिं वट्टइ एक थाइ तहिं एकु पयट्टइ। जइ जीवहो जीवत्तणु आयउ चउभूयहं संजोएं जायउ। तो हउं मण्णमि भुंजियभोयहो एक्कु सहाउ किं ण तेलोयहो। एकु सरीरु किं ण किर पहवइ किं वइतंडिउ पंडिउ विलवइ । एम लोउ मोहिउ कुमईसहिं कणयरकविलसुगयदियसीसहिं । एयहं मइ ण कयाइ वि दिजइ मिच्छापंथे कहि मि ण णिजइ । गयणु अणाइ अणंतु अमाणु वि लोउ अणाइ लोयसंठाणु वि । दहविहु दुविहु स तवंकयदाणु वि धम्मु अणाइ धम्मसंताणु वि। घत्ता-चउगइयउ संसारियहं दविदियभाविंदियपाणहं । पंचमगइ सासयगुणहं सिद्धहं सुद्धहं केवलणाणहं ॥११॥ 10 12 The Right faith. पंचमगइउ अणाइअणंतउ चउगइगहणि जीउ हिंडतउ । अण्णण्णइं जम्माइं भमंतउ अण्णण्णई अंगई छडुंतउ । धम्म मुणंति य संतिकसाया के वि जीव गुरुपयसंगाया। सोलहभावणभाववसंगय सम्मत्तेण विसुद्ध संगय। अट्ठगुणड्डिवंत मइवंता संवेयाइय णिच्च धरंता। देवसत्थगुरुमूढविवजिय जाइकुलाइयमयणावजिय। कुसुरकुगुरुसेवासंगमपर तह य कुसत्थकुसुयपाढयणर । मिच्छालिंगिय तह सेवयजण जेहिं ण सेविय छअणायदण । सुद्धसदिट्ठी ते जाणहि णर साहमियवच्छल्लकयायर । घत्ता-संकाकखाविरहियउ विदिगिंछापरिवजियउ। दसणु जेहिं समासियड तित्थयरत्तणु तेहिं समजिउ ॥१२॥ 10 11. १ D मइ मिच्छापहि कहिं मि. २ E विमाणु. : ABC तवे. 12. १८ भवंतउ. २ C गुणंति समंति कसाया. ३ AB omit the following fire lines. ४ E पाढणपर. ५ E भुअणायद्दण. ६ ABCE omit this line, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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