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________________ नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता ) पदार्थों के निश्चय के बिना अश्रद्धाजनित तरलता, परकर्तृत्वाभिलाषाजनित क्षोभ और परभोक्तृत्वाभिलाषाजनित अस्थिरता के कारण एकाग्रता नहीं होती, और एकाग्रता के बिना एक आत्मा में श्रद्धान- ज्ञान- वर्तनरूप प्रवर्तमान शुद्धात्मप्रवृत्ति न होने से मुनिपना नहीं होता, इसलिये मोक्षार्थी का प्रधान कर्तव्य शब्दब्रह्मरूप आगम में प्रवीणता प्राप्त करना ही है” ॥ २३२ ॥ ( ९१ “ भावार्थ :- आगम की पुर्वपासना से रहित जगत को आगमोपदेश पूर्वक स्वानुभव न होने से "यह जो अमूर्तिक आत्मा है सो मैं हूँ, और ये समानक्षेत्रावगाही शरीरादिक वह पर हैं, इसी प्रकार “ये जो उपयोग है सो मैं हूँ और ये उपयोग मिश्रित मोहरागद्वेषादिभाव हैं सो पर हैं" इसप्रकार स्व-पर का भेदज्ञान नहीं होता तथा उसे आगमोपदेशपूर्वक स्वानुभव न होने से, मैं ज्ञानस्वभावी एक परमात्मा हूँ” ऐसा परमात्मज्ञान भी नहीं होता । इसप्रकार जिसे स्व- पर ज्ञान तथा परमात्मज्ञान नहीं है उसे, ज्ञान न होने से मोहादिद्रव्य भावकर्मों का क्षय नहीं होता, तथा परमात्मनिष्ठता के अभाव के कारण ज्ञप्तिका परिवर्तन नहीं टलने से ज्ञप्तिपरिवर्तन रूप कर्मों का भी क्षय नहीं होता ।” इसप्रकार आत्मोपलब्धि प्राप्त करने एवं स्थिरता प्राप्त करने के लिये भी आगमपूर्वक नयज्ञान द्वारा अनेकताओं के बीच ही छिपे हुए, शुद्धtय के विषयभूत त्रिकाली ज्ञायकभाव एक, को मुख्य बनाकर एवं अनेकताओं को गौण करते हुए, उसी में उपयोग को एकाग्र करने से आत्मानुभव की प्राप्ति होती है। अतः इस उपलब्धि के लिये नयज्ञान अत्यन्त कार्यकारी है । नयज्ञान के भेद वह नयज्ञान सहज ही दो भागों में विभाजित हो जाता है । इसका वर्णन आलापपद्धति में दिया है उसका हिंदी अनुवाद निम्नप्रकार है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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