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________________ २८) ( सुखी होने का उपाय भाग-३ भगवान अरहन्त की सर्वज्ञता भगवान अरहंत की आत्मा का स्वरूप उपर्युक्त विषय यह दृष्टिकोण रखकर समझना है कि हर एक आत्मा के द्रव्य व गुण तो अरहंत भगवान की आत्मा के समान ही एक जैसी ही शक्तिवाले व परिपूर्ण हैं। अगर गुणों में कमी हो तो पूर्णता आवेगी कहाँ से ? अरहन्त के गुणों में जैसा जो कुछ था वह पूर्ण का पूर्ण विकसित होकर व्यक्त हो गया। अत: उनके माध्यम से हमको हरेक आत्मा के द्रव्य व द्रव्य के गुणों का पूर्ण सामर्थ्य सुगमता से ज्ञान-श्रद्धान की पकड़ में आ सकता है। यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि “अभी हमको भगवान अरहंत की आत्मा के स्वरूप को समझना है; अपनी आत्मा को समझने की जल्दबाजी नहीं करनी है" कारण जब तक हमारी कसौटी ही तैयार नहीं होगी तब तक, हमें अपने आत्मा में खोज प्रारंभ कर देने से आत्म स्वरूप कैसे प्राप्त होगा? अत: प्रथम तो हमको अरहंत के स्वरूप को अच्छी तरह समझने में पूरा पुरुषार्थ लगा देना चाहिये । वह पक्का हो जाने पर ही अपने स्वरूप की पहचान सुगमता से हो सकेगी। आत्मा को पहिचानने का लक्षण ज्ञान है उसकी अरहंत की आत्मा में पूर्णता है। लेकिन हमारे में कमी है और उसकी पूर्णता चाहते हैं। हमारी आत्मा में राग द्वेषादि विद्यमान हैं उनका भी अभाव चाहते हैं। राग द्वेषादि भावों का अरहंत में अभाव होने से वे पूर्ण वीतरागी एवं सुखी हैं। पण्डित दौलतरामजी ने छहढ़ाला के मंगलाचरण में कहा तीन भुवन में सार वीतराग विज्ञानता । शिवस्वरूप, शिवकार नमहं त्रियोग सम्हारिके ।। पण्डित टोडरमलजी साहब ने भी मोक्षमार्ग प्रकाशक के मंगलाचरण में इसी वीतराग विज्ञानता को नमस्कार किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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