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________________ 109) (सुखी होने का उपाय अभिप्रायनुसार प्रापण से उस प्रवृत्ति में दोनों नय बनते है। कुछ प्रवृत्ति ही तो नयरूप है नहीं।" उक्त कथन से स्पष्ट है कि मोक्षमार्ग तो द्रव्य की परिणति है, वह नय नहीं है। नय तो उस परिणति को जाननेवाली पर्याय है। दोनों में एक ही प्रकार के शब्द निश्चय-व्यवहार के उपयोग में आने से भ्रमित नहीं होना चाहिये। इस विषय का स्पष्टीकरण भी मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ 249 पर निम्नप्रकार से किया है___"सो मोक्षमार्ग दो नहीं है, मोक्षमार्ग का निरुपण दो प्रकार से है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहा जाय, सो निश्चय मोक्षमार्ग है और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाय. सो व्यवहार मोक्षमार्ग है। क्योंकि निश्चय-व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है।" इस कथन से स्पष्ट है कि मोक्षमार्ग तो द्रव्य की परिणति उसको निरूपित करनेवाली, जाननेवाली ज्ञान की पर्याय, वह नय है। . पृष्ठ 241 पर और भी स्पष्ट किया है कि - "एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप ही निरूपण करना, सो निश्चयनय है। उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भाव रूप निरूपण करना, सो व्यवहार है।" इसप्रकार मोक्षमार्ग रूप से तो आत्मा स्वयं परिणमता है। अतः वह तो द्रव्य की परिणति है, उस वीतराग परिणति के साधन से मोक्ष प्राप्त होता ही है। उस परिणति को निश्चय मोक्षमार्ग कहा गया है। और वीतराग परिणति के साथ ही वर्तनेवाली रागपरिणति, जो स्वंय तो मोक्षमार्ग है नहीं, लेकिन साथ रहते हुए भी वीतराग परिणति का घात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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