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________________ ४४ ] [ सुखी होने का उपाय उनमें यह जीवद्रव्य कुछ भी परिवर्तन कर सकता। जीव तो अन्य पर्याय के आकार अपने प्रदेशों को परिवर्तित कर लेता है लेकिन साथ में ही अत्यन्त नजदीक रहने वाले शरीर के किसी एक भी परमाणु को मनुष्याकार परिणमन नहीं करा सकता । अतः गंभीरता से विचारना चाहिए कि इसका क्या कारण है ? इसका कारण मात्र एक ही है कि जो द्रव्य परिणमन करेगा उसके उस परिणमन को ही तो पर्याय कहते हैं। अत: जब कोई भी द्रव्य परिणमन करेगा तो उसकी सीमा मर्यादा अपनी स्वयं की पर्याय तक ही है, अन्यद्रव्य उसी समय अपनी पर्यायरूप परिणमन आप ही कर रहा है, उसमें दूसरा द्रव्य कैसे हस्तक्षेप कर सकेगा ? विश्व के सब ही द्रव्य स्वत: ही अपनी पर्यायों को बेरोक-टोक के निरन्तर करते ही रहते हैं। उनका कार्य कभी भी किसी भी समय रुकता नहीं और बिना पर्याय का द्रव्य भी हो सकता नहीं । अत: द्रव्य हमेशा पर्याय रूप में ही प्राप्त होता है । निष्कर्ष यह है कि विश्व में जाति अपेक्षा छह प्रकार के, संख्या अपेक्षा अनंतानंत द्रव्य हैं । उनमें से हर एक द्रव्य अनवरत रूप से अपनी-अपनी पर्यायों को करता ही रहता है । तब दूसरा द्रव्य अगर यह माने कि मैंने इस द्रव्य की पर्याय को कर दिया अथवा मैं अन्य द्रव्य की पर्याय को कर सकता हूँ, तो उसका ऐसा मानना मिथ्या है। यह मानना इसीप्रकार का होगा जैसे कोई अपने पड़ोसी के मकान को अपना मानकर उसमें कुछ भी हेरफेर करने लगे तो उसको अपराधी ही घोषित किया जावेगा । उसीप्रकार अगर यह जीवद्रव्य, अपने ही शरीर आदि अन्य किसी भी द्रव्य को अपना मानकर उसके फेरफार करने का अधिकार मानेगा तो उसकी आज्ञा तो उस अन्य द्रव्य पर चलेगी नहीं, लेकिन ये जीव अपने को अधिकारी मानने की मिथ्या मान्यता के कारण, निरन्तर दुःखी ही दुःखी होता रहेगा। इसलिये जब तक यह मान्यता नहीं बदलती, तब तक निरन्तर इस दंड को भोगता ही रहेगा । अतः उपरोक्त मिथ्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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