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________________ ४० ] [ सुखी होने का उपाय असर नहीं होता। ऐसा ही सर्वत्र मानकर अपने कर्तव्य के मिथ्या अभिमान को छोड़कर सब द्रव्यों के परिणमनों की ओर से उपेक्षित होकर, आत्मसन्मुख होने का पुरुषार्थ प्रगट करना ही कर्तव्य है । यह चर्चा वस्तु का स्वभाव जानने के अन्तर्गत ही चल रही है। गुण क्या हैं ? उपर्युक्त सारे विवेचन के बाद एक जिज्ञासा खड़ी होती है कि जिन गुणों की एक-एक समय की एक-एक पर्याय की स्वतंत्रता सिद्ध की गई है, वे गुण क्या हैं व कौन-कौन से हैं ? छह द्रव्यों के समुदाय को ही विश्व अर्थात् लोक कहते हैं, उनमें जाति की अपेक्षा द्रव्य छह होते हुए भी संख्या की अपेक्षा अनन्त - अनन्त हैं, उनमें से हर एक द्रव्य में अपने-अपने में ही रहने वाले अनन्त गुण अर्थात् स्वभाव अर्थात् क्वालिटी होती है। जिनवाणी में इन सबके गुणों की विशेषताओं का अनेक प्रकार से विभाजन किया गया है। सामान्य एवं विशेष गुण उपर्युक्त छह द्रव्यों के गुणों में जो कि हर एक द्रव्य में संख्या की अपेक्षा अनंत होते हैं, उन अनंत गुणों में बहुत से गुण ऐसे भी हैं जो कि सभी द्रव्यों में मिलते हैं । जैसे अस्तित्वगुण अर्थात् हर एक द्रव्य का अस्तित्व कायम बने रहना । प्रेमयत्व गुण अर्थात् ज्ञान में आ सकने की योग्यता यानि ज्ञेयत्वपना | द्रव्यत्वगुण अर्थात् कूटस्थ की तरह नहीं रहना, परिणमते रहना । अगुरुलघुत्व अर्थात् अपनी सीमा में बने रहना, न बहुत छोटा होकर ज्ञान में आवे और न बहुत बड़ा हो जावे आदि-आदि अनन्त ऐसे गुण हैं जो सभी द्रव्यों में मिल जाते हैं। लेकिन ऐसे गुणों के द्वारा उन द्रव्यों को भिन्न-भिन्न रूप से पहिचाना नहीं जा सकता, अत: उनको · उन द्रव्यों का लक्षण नहीं कहा जाता। ऐसे गुणों को ही शास्त्रीय भाषा में सामान्य गुण कहा गया है। लेकिन नीचे कहे गये जीव के ज्ञान दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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