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________________ [ १३ आम आ ग्रन्थमालानो प्रथम सेट आशरे १६ ग्रंथपुष्पोनो थशे. प्रस्तुत मूलपय डिठिइबंधो [मूलप्रकृतिस्थितिबन्ध ] ग्रन्थ बंधविधान महाशात्रना बीजा खंडना प्रथमभागरूप छे. अनी विद्वान मुनिराज श्री वोरशेखर विजयजीओ रचेली ८७६ गाथाओ प्राकृतभाषामां छे अने तेना उपर प्रेमप्रभा नाम मुनिराज श्री जगचन्द्रविजयजीओ करेलु २० हजार श्लोकप्रमाण विस्तृत विवेचन-टीका संस्कृतमां छे. बन्धविधानना प्रथमखण्डनो प्रथमभाग 'मूलप्रकृतिबंध' लखाईने तैयार थई गयो छे पण तेना लेखक मुनिराज श्री गुणरत्नविजयजी 'खवगसेढी' ना सम्पादनकार्यमा रोकायला होवाथी ते ग्रंथ हवे पछी प्रगट थशे. विश्वव्यवस्थानो विचार जैनर्दशने खूवज यथार्थदृष्टिथी कर्यो छे तेथीज जैनदर्शननी ताच्चिकता प्रत्ये विश्वना तच्चचितकोनु मस्तक नमी पड़े छे. जैन दर्शने समजाव्यु' छे के जगत १ जीव आत्मा २. पुद्गल ३. धर्मास्तिकाय ४. अधर्मास्तिकाय ५. आकाशास्तिकाय अने ६. काळ-आ छ द्रव्यमय छे. जीवद्रव्य - आत्मद्रव्य बीजाद्रव्योथी, यावत् शरीरथी पण स्वतंत्र अस्तित्व धरावे छे अने अ प्रमाणोथी साबीत छे.आ आत्मानी बाबतमां अनेक दृष्टिबिंदुथी प्रकाश पाथरतो यथार्थ आत्मवादजैन दर्शन मां मले छे. आत्मद्रव्यना पण वे भेद छे. १. मुक्तात्माओ २. संसारी आत्माओ. मुक्त त्माओ कर्ममलरहित राग, द्वेष, मोह, अज्ञान, देह, मन, वचन तेमज पुद्गलद्रव्यना संगमात्रथी रहित, अनन्तज्ञानादिमय अने स्फटिकरत्नवत् निर्मल आत्मस्वरूपने वरेला छे अने तेओ लोकना मस्तकस्थाने सिद्धशिला उपर लोकान्तने स्पर्शाने रहेला छे, संसारीआत्माओनु मूलभूत असलस्वरूप मुक्तात्माओ जेव' होवा छतां अनादिकाळथी कर्ममलथी मलिन, राग, द्वेष, मोह, अज्ञान तेमज सुखदुःखादि लागणीओने पराधीन, शरीरादि पुद्गलद्रव्यना संगवालु छे. अकेन्द्रियथी मांडी पंचेन्द्रियपणासुवीनी भिन्न भिन्न अवस्थामा अने संसारनी चारगतिओमां तेओ परिभ्रमण करी रह्या छे. संसारी जीवोनी आ विकृत अवस्था कर्माणुओना संबंधने आभारी छ. अनंतशक्तिने वरेलो, अनंतगुणथी भरेलो आत्मा पण कर्मनी पराधीनताने कारणे अज्ञान, रागद्वेषादि अनंतदोषमय अवी भारे दयापात्र दशा अनुभवी रह्यो छे, आत्माना सहजस्वरूपने दवावी देनार कर्मसत्तानी अनंत जटिलताने विवेचतां कर्मवाद-कर्मविज्ञाननी ओक अनोखी देण जगतने अंकमात्र जैनदर्शने ज करी छ. जीवमात्रना सुखदुःखमां अने संसारपरिभ्रमणमां मुख्यभाग भजवनार कर्म अने तेना ज्ञानविज्ञान नी अर्थरूपे प्रथमप्ररूपणा अनंतउपकारी श्री तीर्थङ्करभगवंतोओ करी अने श्रोगणधरभगवंतोओ अने सूत्ररूपे गुथी. चौदपूर्वमां अनेक स्थले कर्मवादनु विज्ञान संगृहीत कयु. तेमांना बीजा आग्रायणीपूर्वना क्षणलब्धि (वचनलब्धि) नामनी पांचमी वस्तुना कर्मप्रकृति नामना चोथा प्राभृतमां थयेला कर्मवादना उद्धार अंगे जुओ प्राचीनशतकचूर्णिनो शास्त्रपाठः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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