SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३-सम्बन्धित व्यक्तियोंका परिचय मुनि भानुचन्द्र इनका बनारसीदासजीने मान, भानु,भानु-सुगुरु, रविचन्द और भानुचन्द्र नामसे अनेक स्थानोंमें उल्लेख किया है। ये श्वेतम्बर खरतरगच्छकी लघुशाखाके जिनप्रभसूरिके अन्वयमें हुए हैं। इनके गुरुका नाम अभयधर्म उपाध्याय था। अभयधर्म नामके एक और मी मुनि इसी खरतर गच्छमें हो गये हैं जिनके शिष्य कुशललाभ थे / कुशललामने वि० सं० 1624 में वीरमगाँव (गुजरात) में रहते समय 'तेजसार रासो' की रचना की थी। उनका बिहार मारबाड़की ओर अधिक होता रहा है और वे निश्चय ही बनारसीदासजीके गुरु भानु१-गोयम-गणहर-पय नौं, सुमरि सुगुरु 'रविचंद। सरसुति देवि प्रसाद लहि, गाऊं अजित जिनिंद ॥-बनारसीविलास 193 'भानु' उदय दिनके समै, 'चंद'उदय निसि होत, दोऊ लाके नाममै, सो गुरु सदा उदोत // --ब० वि० 143 इति प्रश्नोत्तर मालिका, उद्धव-हरि-संवाद / भाषा कहत बनारसी, 'भानुसुगुरु' परसाद // ~~-ब० वि० पृ. 188 सँवरौ सारदसामिनि औ गुरु 'भान' / कछु बलमा परमारथ करो बखान !! - व० वि० प० 238 ओंकार परनाम करि, 'भानु' सुगुरु धरि चित्त / रों सुगम नामावली, बाल-विबोधनिमित्त // 1 जे नर राखें कंठ निज, होइ सुमति परगास / 'भानु सुगुरु परसादते, परमानंद विलास ।।-नाममाला २-खरतरगणस्य श्राद्धः लघुशाखीयखरतरगणस्य श्रावकः / -युक्तिप्रबोध द्वि० गाथाकी टीका ३.-श्रीखरतरगच्छि सहि गुरुराय, गुरु श्रीअभयधर्मउबझाय / सोलहसै च उनीसिमझार, श्रीवीरमपुर नथरमझार // 2 अधिकारई जिनपूजातणइ, वाचक कुशललाभ इमि भाइ / - --आनन्दकाव्यमहोदधि सप्तमभागको भूमिका पृ० 156 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy