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________________ 74 बरस पचाबन ए कहे, बरस पचाबन और / बाकी मानुष आउमैं, यह उतकिष्टी दौर / 664 बरस एक सौ दस अधिक, परमित मानुष आउ / सोलहसै अट्टानबै, समै बीच यह भाउ // 665 तीनि भांतिके मनुज सब, मनुजलोकके बीच / बरतहिं तीनौं कालमै, उत्तम, मध्यम, नीच / / 666 अथ उत्तम नर यथाजे परदोष छिपाइकै, परगुन के विशेष / गुन तजि निज दूषन कहैं, ते नर उत्तम भेष / / 667 अथ मध्यम नर यथा-- जे भाखहिं पर-दोष-गुन, अरु गुन-दोष सुकीउ / कहहि सहज ते जगतमैं, हमसे मध्यम जीउ / / 668 ___ अथ अधम नर यथाजे परदोष कहैं सदा, गुन गोपहिं उर बीच दोष लोपि निज गुन कहें, ते जगमैं नर नीच 669 सौलह सै अटानबै, संबत अगहनमास सोमबार तिथि पंचमी, सुकल पक्ष परगास 670 नगर आगरेमैं बसै, जैनधर्म श्रीमाल / बानारसी बिहोलिआ, अध्यातमी रसाल 671 1 ड करें / 2 अ अट्ठावना, ड अट्ठानवा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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