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________________ ३ कार्तिकेयानुप्रेक्षा अन्वयार्थः-[ जीवो ] संसारी जीव [णेरइयादिगदीणं] नरकादि चार गतियोंकी [ अवरद्विदो] जघन्य स्थितिसे लगाकर [ वरद्विदी जाव ] उत्कृष्ट स्थिति पर्यंत ( तक ) [ सव्वढिदिसु ] सब अवस्थाओंमें [गेवेज्जपज्जतं ] ग्रं वेयक पर्यन्त [ जम्मदि ] जन्म पाता है । भावार्थः-नरकगतिकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षकी है इसके जितने समय हैं उतनी बार तो जघन्यस्थितिकी आयु लेकर जन्म पावे, बादमें एक समय अधिक आयु लेकर जन्म पावे। बादमें दो समय अधिक आयु लेकर जन्म पावे । ऐसे ही अनुक्रमसे तेतीस सागर पर्यन्त आयु पूर्ण करे, बीचबीचमें घट बढ़कर आयु लेकर जन्म पावे वह गिनतीमें नहीं है। इस तरह तिर्यंच गतिकी जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त, उसके जितने समय हैं उतनी बार जघन्य आयुका धारक होवे बादमें एक समय अधिक क्रमसे तीन पल्य पूर्ण करे, बीचमें घट बढ़कर आयु लेकर जन्म पावे वह गिनतीमें नहीं हैं। इसी तरह मनुष्यको जघन्यसे लगाकर उत्कृष्ट तीन पल्य पूर्ण करे । इसी तरह देवगतिकी जघन्य दस हजार वर्षसे लगाकर ग्रं वेयकके उत्कृष्ट इकतीस सागर तक समय-अधिक-क्रमसे पूर्ण करे । ग्रं वेयकके आगे उत्पन्न होनेवाला एक दो भव लेकर मोक्ष ही जावे इसलिये उसको गिनती में नहीं लाये । इस तरह इस भवपरावर्तनका अनन्त काल है। अब भावपरिवर्तनको कहते हैंपरिणमदि सण्णिजीवो, विविहकसाएहि ट्ठिदिणिमित्तेहिं। अणुभागणिमित्तेहिं य, वहतो भावसंसारे ॥७१॥ अन्वयार्थ:-[ भावसंसारे वट्टन्तो] भावसंसारमें वर्तता हुआ जीव [ द्विदिणिमित्तेहि ] अनेक प्रकार कर्मकी स्थितिबन्धको कारण [य अणुभागणिमित्तेहिं ] और अनुभागबन्धको कारण [विविहकसाएहिं] अनेक प्रकारके कषायोंसे [ सण्णिजीवो ] सैनी पंचेन्द्रिय जीव [ परिणमदि ] परिणमता है। भावार्थ:-कर्मकी एक स्थितिबन्धको कारण कषायोंके स्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं, उसमें एक स्थितिबन्धस्थानमें अनुभागबन्धको कारण कषायोंके स्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं । जो योग्य स्थान हैं वे जगत्श्रेणीके असंख्यातवें भाग हैं । यह जीव उनका परिवर्तन करता है। सो किसतरह ? कोई सैनी मिथ्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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