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________________ २८ कार्तिकेयानुप्रेक्षा ५ -- धनदेव, मेरी माता वसंततिलकाका पति है इसलिये धनदेव मेरा पिता हुआ, उसका तू छोटा भाई है इसलिये तू मेरा काका ( चाचा ) भी है । - मैं वसन्ततिलकाकी सौत इसलिये धनदेव मेरा ( सोतेला) पुत्र हुआ उसका तू पुत्र इसलिये मेरा पोता भी है । इसप्रकार वह वरुण के साथ छह नाते कह रही थी कि वहां वसन्ततिलका आ गई और कमलासे बोली कि तू कौन है जो मेरे पुत्रको इस तरह छह नाते सुनाती है ? तब कमला बोली कि तेरे साथ भी मेरे छह नाते हैं सो सुन- क्योंकि धनदेवके साथ तेरे ही उदरसे ( पेटसे) १ -- पहिले तो तू मेरी माता है उत्पन्न हुई हूँ | २ -- धनदेव मेरा भाई है । तू उसकी स्त्री है इसलिये मेरी भावज ( भोजाई ) है । ३ -- तू मेरी माता है । तेरा पति धनदेव मेरा पिता हुआ । उसकी तू माता है । इसलिये मेरी दादी है | ४ -- मेरा पति धनदेव है । तू उसकी स्त्री है । इसलिये मेरी सौत भी है । ५--धनदेव तेरा पुत्र सो मेरा भी ( सोतेला ) पुत्र हुआ । तू उसकी स्त्री है इसलिये तू मेरी पुत्रवधू भी है । ६ - मैं धनदेवकी स्त्री हूँ । तू धनदेवकी माता है । इसलिये तू मेरी सास भो है । इस प्रकार वेश्या छह नाते सुनकर चिन्तामें धनदेव आ गया । उसको देखकर कमला बोली कि हैं सो सुनिये: विचार कर रही थी कि वहां तुम्हारे साथ भो हमारे छह नाते १ - पहिले तो तू और मैं इसी वेश्याके उदरसे साथ साथ उत्पन्न हुए सो तू मेरा भाई है । २-- बाद में तेरा मेरा विवाह हो गया सो तू मेरा पति है । ३ - वसन्ततिलका मेरी माता है, उसका तू पति है इसलिये मेरा पिता भी है । पिता है इसलिये उसका ४ - वरुण तेरा छोटा भाई सो मेरा काका हुआ । काका का पिता होनेसे मेरा तू दादा भी हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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