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________________ धर्मानुप्रेक्षा १५७ अन्वयार्थः-[ जो किसिपसुपालणवणिजपमुहेसु ] खेती करना पशुओंका पालना वाणिज्य करना इत्यादि पापसहित कार्य तथा [ पुरिसित्थीसंजोए ] पुरुष स्त्रीका संयोग जैसे हो वैसे करने आदि कार्योंका [ उवएसो दिजइ ] दूसरोंको उपदेश देना इनका विधान बताना जिनमें अपना प्रयोजन कुछ सिद्ध नहीं होता हो केवल पाप ही उत्पन्न होता हो [विदिओ अणत्थदडो हवे ] सो दूसरा पापोपदेश नामका अर्नथदण्ड है ।। भावार्थ:-दूसरेको पापका उपदेश देने में अपने केवल पाप ही बँधता है इसलिये व्रतभंग होता है इस कारण इसको छोड़नेसे व्रतोंकी रक्षा होती है व्रतों पर गुण करता है उपकार करता है इसीलिये इसका नाम गुणव्रत है। अब तीसरे प्रमादचरित नामक अनर्थदण्डके भेदको कहते हैंविहलो जो वावारो, पुढवीतोयाण अग्गिवाऊणं । तह वि वणप्फदिछेदो, अणत्थदंडो हवे तिदिओ ॥३४६॥ अन्वयार्थः- [ जो पुढवीतोयाण अग्गिवाऊणं विहलो वावारो ] जो पृथ्वी जल अग्नि पवन इनके व्यापारमें विफल ( बिना प्रयोजन ) प्रवृत्ति करना [ तह वि वणप्फदिछेदो] तथा बिना प्रयोजन वनस्पति ( हरितकाय ) का छेदन भेदन करना [तिदिओ अणत्थदंडो हवे ] सो तीसरा प्रमादचरित नामक अनर्थदण्ड है। - भावार्थः-जो प्रमादके वश होकर पृथ्वी जल अग्नि पवन हरितकायकी बिना प्रयोजन विराधना करता है वहाँ त्रस स्थावरोंका घात ही होता है, अपना कार्य कुछ सिद्ध नहीं होता है इसलिये इसके करनेसे व्रत भंग होता है और छोड़ने पर व्रतकी रक्षा होती है। अब चौथे हिंसादान नामक अनर्थदण्डको कहते हैं मज्जारपहुदिधरणं, आयुहलोहादि विक्कणं जं च । लक्वाखलादिगहणं, अणत्थदंडो हवे तुरिभो ॥३४७॥ अन्वयार्थः- [ मजारपहुदिधरणं ] जो बिलाव आदि हिंसक जीवोंका पालना [ आयुहलोहादि विकणं जं च ] लोहेका तथा लोहे आदिके आयुधोंका व्यापार करना देना लेना [ लक्खाखलादिगहणं ] लाख खल आदि शब्दसे विष वस्तु आदिका देना लेना व्यापार करना [ तुरिओ अणत्थदडो हवे ] चौथा हिंसादान नामक अनर्थदण्ड है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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