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________________ लोकानुप्रेक्षा मुख्य गौण कर अपना संकल्परूप विषय करता है । उदाहरण-जैसे, इस मनुष्य नामक जोवद्रव्यके संसार पर्याय है, सिद्ध पर्याय है, और यह मनुष्य पर्याय है ऐसा कहें तो संसार अतीत, अनागत, वर्तमान तीन काल सम्बन्धी भी है, सिद्धत्व अनागत ही है, मनुष्यत्व वर्तमान ही है परन्तु इस नयके वचनसे अभिप्रायमें विद्यमान संकल्प करके परोक्ष अनुभवमें लेकर कहते हैं कि इस द्रव्यमें मेरे ज्ञानमें अभी यह पर्याय भासती है ऐसे संकल्पको नैगमनयका विषय कहते हैं। इनमें से मुख्य गौण किसीको कहते हैं । अब संग्रहनय को कहते हैं जो संगहेदि सव्वं, देसं वा विविहदव्वपज्जायं । अणुगमलिंगविसिटु, सो वि णयो संगहो होदि ॥२७२॥ अन्वयार्थ:-[ जो ] जो नय [ सव्वं ] सब वस्तुओंको [ वा ] तथा [ देशं ] देश अर्थात् एक वस्तुके भेदोंको [ विविहदव्वपञ्जायं ] अनेक प्रकार द्रव्यपर्यायसहित [ अणुगमलिंगविसिटुं ] अवन्य लिंगसे विशिष्ट [ संगहेदि ] संग्रह करता है-एक स्वरूप कहता है [ सो वि गयो संगहो होदि ] वह संग्रह नय है । भावार्थः-सब वस्तुएँ, उत्पादव्यय ध्रौव्य लक्षण सत्के द्वारा द्रव्यपर्यायोंसे अन्वयरूप एक सत्मात्र है, सामान्य सत्स्वरूप द्रव्य मात्र है, विशेष सत्रूप पर्यायमात्र हैं, जीव वस्तु (द्रव्य ) चित् सामान्य से एक है, सिद्धत्व सामान्यसे सब सिद्ध एक हैं, संसारित्व सामान्यसे सब संसारी जीव एक हैं इत्यादि । अजीव सामान्यसे पुद्गलादि पाँच द्रव्य एक अजीव द्रव्य हैं, पुद्गलत्व सामान्यसे अणु स्कन्ध घटपटादि एक द्रव्य है इत्यादि संग्रहरूप कहता है सो संग्रह नय है। अब व्यवहारनयको कहते हैं जो संगहेण गहिदं, विसेसरहिदं पि भेददे सददं । परमाणूपज्जंतं, ववहारणो हवे सो हु ॥२७३॥ अन्वयार्थः-[ जो ] जिस नयने [ संगहेण ] संग्रह नयसे [ विसेसरहिदं पि ] विशेषरहित वस्तुको [ गहिदं ] ग्रहण किया था उसको [ परमारगूपज्जतं ] परमाणु पर्यन्त [ सददं ] निरन्तर [ भेददे ] भेदता है [ सो हु ववहारणओ हवे ] वह व्यवहार नय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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