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________________ द्वावशानुप्रेक्षाधिकारः ] ___ [ ११ कि केण कस्स कत्थ व केवचिरं कदिविधो य भावो य । छहिं अणियोगद्दारे सव्वे भावाणुगंतव्वा ॥७०७॥ ___ : संसार: ? संसरणं संसारश्चतुर्गतिगमनरूपः, केन भावेन संसार:? औदयिकौपशमिकक्षायोपशमिकपारिणामिकादिभावेन, कस्य ? संसारिजीवस्याष्टविधकर्मावष्टब्धस्यनारकतिर्यङमनुष्यदेवरूपस्य, क्व संसार: ? मिथ्यात्वासंयमकषाययोगेषु तिर्यग्लोके वा, कियच्चिरं संसार: ? अनाद्यनिधनोऽनादिसनिधनः, कतिविधः? कतिप्रकार इति । अनेन प्रकारेण संसार एकविधो द्विविधस्त्रिविधश्चतर्विधः पंचविधः षडविध इत्यादि, न केवलं संसार: षड्भिरनियोगद्वारायते किन्तु सर्वेऽपि भावाः पदार्था अनुगंतव्या ज्ञातव्या इत्यर्थः ॥७०७॥ संसारे दुःखानुभवमाह तत्थ जरामरणभयं दुक्खं पियविप्पप्रोग बीहणयं । अप्पियसंजोगं वि य रोगमहावेदणाप्रो य ।।७०८॥ तत्रैवंविधे संसारे जरामरणभयं जन्मभयं दुःखं, जरामरणभवं जन्मभवं वा दुःखं कायिकं वाचिकं मानसिक, प्रियेण विप्रयोगः पृथग्भाव इष्टवियोगदुःखं, भीषणं च महाभयानकं, अप्रियेण संयोगोऽनिष्टेन गाथार्थ-संसार क्या है ? किस प्रकार से है ? किसके है और कहाँ है ? कितने काल तक है और कितने प्रकार का है ? इन छह अनुयोगों के द्वारा सभी पदार्थों को समझना चाहिए ॥७०७।। ___ आचारवृत्ति--संसार क्या है ? संसरण करना संसार है जोकि चारों गतियों में गमन रूप है । किस भाव से संसार होता है ? औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक आदि भावों से संसार होता है। किसके संसार है ? जो आठ प्रकार के कर्मों से सहित है ऐसे नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देवरूप संसारी जीवों के संसार होता है। संसार कहाँ है ? मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग इन भावों में संसार है अथवा तिर्यक्लोक में संसार है। कितने काल तक संसार है ? यह अनादि अनन्त है ओर अनादि-सान्त है । अर्थात् अभव्य और दूरानुदूर भव्यों की अपेक्षा अनादि-अनन्त है तथा भव्यों की अपेक्षा अनादि-सान्त है। यह संसार कितने प्रकार का है ? सामान्य संसरण की अपेक्षा यह संसार एक प्रकार का है, दो प्रकार का है, तीन प्रकार का है, चार प्रकार का है, पाँच प्रकार का है और छह प्रकार का है इत्यादि। इन छह अनुयोगों के द्वारा केवल संसार ही नहीं जाना जाता है किन्तु सभी पदार्थ भी जाने जाते हैं। ऐसा जानना चाहिए। संसार में दुःखों के अनुभव को बताते हैं गाथार्थ-संसार में जरा और मरण का भय, इष्ट का वियोग, अनिष्ट का संयोग और रोगों से उत्पन्न हुई महावेदनाएं ये सब भयंकर दुःख हैं ॥७०८॥ । आचारवृत्ति-उपर्युक्त कथित प्रकारवाले इस संसार में जन्म के भय का दुःख, जरा और मरण के भय का दुःख, अथवा जन्म लेने से हुए दुःख जो कि कायिक, वाचनिक और मानसिक होते हैं। प्रिय जनों के वियोग से इष्टवियोगज दुःख होता है, जो कि महाभयानक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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